
Difference Between the Powers of America and China (Comparison of America and China) अमेरिका और चीन की तुलना :
शुरू से ही चीन अमेरिका का मुकाबला करने की कोशिश करता रहा है और वह हर कदम पर अमेरिका (Difference Between the Powers of America and China) को मात भी दे चुका है। लेकिन बात वहीं आ कर रुक जाती है, कि कौन सा देश ज्यादा बेहतर है, अमेरिका या चीन? इसका कारण यह है कि अमेरिका जितना शक्तिशाली देश है, चीन भी खुद को उतना ही शक्तिशाली बताता है। लेकिन, सवाल अब भी वहीं है, कि वाकई में कौन सा देश ज्यादा बेहतर है? आज हम इस आर्टिकल में जानेंगे कि कौन सा देश शिक्षा, सैन्य, व्यापार आदि की तुलना में बेहतर है।
हालांकि दोनों देश की तुलना करना कोई गलत बात नहीं होगी, क्योंकि अमेरिका जहां अपने आप में सबसे शक्तिशाली देश है। वही चीन भी अपने नए-नए अविष्कार के कारण आगे बढ़ रहा है। देखा जाए, तो चीन ने बहुत ही कम समय में अच्छी खासी तरक्की कर ली है। चीन ऑटोमोबाइल सेक्टर में काफी ज्यादा अच्छा प्रदर्शन कर रहा है दुनिया भर में सस्ते दामों पर सामान का उत्पादन एकमात्र चाइना ही करता है।
कुछ सालों से देखा जाए तो चाइना हर कदम पर अमेरिका को टक्कर दे देता रहा है और अमेरिका को इसी बात का डर है, कि कहीं उसकी जगह चाइना ना ले बैठे और यह ख्याल कुछ गलत भी नहीं है। समय के साथ बहुत कुछ बदल रहा है और यह बताना बेहद कठिन है कि चाइना अमेरिका की तुलना ज्यादा बेहतर है या अमेरिका चाइना की तुलना ज्यादा बेहतर। आइए नीचे जानते हैं कि दोनों देशों की तुलना में कौन देश ज्यादा बेहतर, समृद्ध और शक्तिशाली है।
अमेरिका और चीन की शिक्षा का व्यापक स्तर : (US and China Comprehensive Level of Education)
चीन हर क्षेत्र में तरक्की कर रहा है। इसके साथ-साथ एजुकेशन सैक्टर में भी चीन ने काफी उन्नति कया है। चीन ना केवल अपने विद्यार्थियों के लिए बल्कि विदेशी विद्यार्थियों के लिए भी पढ़ाई की काफी अच्छी व्यवस्था उपलब्ध कराई है, ताकि चीन में भी ज्यादा से ज्यादा विदेशी विद्यार्थियों का आना जाना लगा रहे और वे आकर अपनी पढ़ाई कर सकें।
देखा जाए तो हाल के ही कुछ वर्षों में चीन के यहाँ भी विदेशी विद्यार्थी पढ़ने के लिए आ रहे हैं। आज की स्थिति कुछ इस प्रकार कि एजुकेशन के फील्ड मे चीन ने अपनी एक अलग ही पहचान दुनिया भर में बना ली है। यू के और आस्ट्रेलिया के बाद चीन दुनिया का चौथा सबसे अच्छा मेडिकल एजुकेशन हब बन गया है।

चीन के करीब 25 इंस्टिट्यूट ऐसे थे जो 2013 और 2014 में यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में शामिल हुए थे। आंकड़ों के मुताबिक 2012 में चीन अमेरिका के विद्यार्थियों के लिए पांचवा सबसे पसंदीदा शिक्षा का स्थान बन गया था। इसके बाद लगातार विद्यार्थियों का आना जाना लगा रहा और देखते ही देखते आंकड़ों के अनुसार यह ज्ञात हुआ कि साल 2012 में चीन मे करीब 32,00,00 विदेशी विद्यार्थी पढ़ने आए थे।
2020 के आंकड़ों के मुताबिक चीन में करीब 500000 विदेशी विद्यार्थियों का आगमन हुआ जो मुख्य रूप से पढ़ने के लिए आए है, जिसके लिए चीन ने काफी सुविधाएं भी प्रदान की है । चीन में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप देने की योजना आदि बनाई है जिससे अनुसार चीन ने इस मामले में अमेरिका को वाकई में पछाड़ दिया है। आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका से ज्यादा चीन में विदेशी विद्यार्थी पढ़ने के उद्देश की पूर्ति के लिए आते हैं।
व्यापारी क्षेत्र में अमेरिका और चीन की तुलना : (Comparison of US and China in merchant sector)
एक समय था जब अमेरिका अपने घरेलू बाजारों को विश्व भर के लिए खोल रहा था लेकिन अब कुछ समय से उसे एहसास होने लगा कि कुछ देश उसकी इस नेक नियति और सद्भावना का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। खासकर चीन ने अमेरिका के खुले बाजारों की नीतियों का भरपूर फायदा उठाया है और अमेरिकी बाजार को सस्ते से सस्ते चीनी माल से बेचकर अमेरिकी उद्योगों को चौपट कर दिया है। अन्य देशों द्वारा चीन से जिस प्रकार के सामानों का आयात होता है उस दृष्टि से देखने पर वाकई में अमेरिकी उद्योग पीछे छूट गया है।
वही चीन स्वयं अपने बाजारों और उद्योगों को बड़ी ही चालाकी से अमेरिकी उत्पादन से संरक्षित करके रखा हुआ है। इस तरह धीरे-धीरे दोनों ही देशों के बीच होने वाले आयात-निर्यात का फासला लंबा होता चला गया और डॉलर का बहाव पूरी तरह से चीन की ओर होता जा रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप जो स्वयं एक व्यवसाई है, उन्हें शुरू से यह स्थिति अमेरिकी हितों के प्रतिकूल लग रही थी।
डोनाल्ड ट्रम्प ने कई बार यह प्रयास किया कि चीन (Difference Between the Powers of America and China) इस धोखाधड़ी से दूर हो जाए और दोनों देशों के बीच संतुलन बना रहे एवं इसके साथ-साथ आयात-निर्यात को लेकर व्यापारी संबंध बने रहें, लेकिन, चीन ने ट्रंप की चेतावनियों को हर बार नजरअंदाज कर दिया और आज दोनों राष्ट्रों के बीच व्यवसाय अंतर लगभग $500 सालाना का है, जो कि अमेरिकी विदेशी मुद्रा के रिसाव का एक बड़ा कारण है।
अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने कड़ा कदम उठाते हुए चीन से आयात होने वाले स्टिल और एलुमिनियम पर 25% का आयात शुल्क लगा दिया है, जिससे कि अमेरिका को $50 का राजस्व मिलेगा और साथ ही अमेरिकी स्टील मिलों को सस्ते चीनी स्टील के साथ कॉन्पिटिशन से राहत भी मिलेगी। इस प्रकार यह स्वाभाविक है कि चीन को यह कदम पसंद नहीं आया और उसने जवाब में एक नई कार्रवाई करते हुए अमेरिका से आने वाले उत्पादों खासकर कपास, मक्का, सोयाबीन आदि पर आयात शुल्क बढ़ा दिया। ऐसी वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ा देने से काफी अंतर देखे जा रहे हैं।
अमेरिका और चीन की सैन्य तुलना : (US and China Military Comparison)
चीन के अमेरिका को युद्ध की धमकी देने के बाद विश्व भर के अन्य देश भी चिंता में आ गए हैं, क्योंकि यदि युद्ध हुआ तो बाकी देशों को भी विभिन्न प्रकार के समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। वैसे अगर देखा जाए तो दोनों ही देश यानी अमेरिका और चीन सैन्य शक्ति के मामले में बिल्कुल भी कमज़ोर नहीं है।
दोनों ही देशों की अपनी अपनी सैन्य क्षमता है। दोनों ही देश अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाने में लगे हुए हैं। यदि कभी इन दोनों के बीच युद्ध होता है तो निश्चित रूप से बहुत ही बड़े पैमाने पर नुकसान होने की संभावना है। इनके नुकसान की भरपाई करना वाकई में एक कठिन कार्य होगी। इस प्रकार हम अंदाजा लगा सकते कि दोनों की सैन्य शक्ति कितनी शक्तिशाली एवं समृद्ध है।
चीन लगातार दुनिया भर में अपनी सैन्य क्षमता को धीरे धीरे बढ़ाते जा रहा है। अपनी बीआरआई परियोजना के तहत विभिन्न देशों में अपने मिलिट्री बेस बना रहा है। चीन ने इस परियोजना यानी बीआरआई परियोजना में अरबों खरबों डालर निवेश किया है, जो वाकई में एक सराहनीय कार्य है। पेंटागन की एक रिपोर्ट के अनुसार ,चीन परमाणु क्षमता वाली मिसाइल ऐसे हथियारों और मिसाइलो के विकास में लगातार प्रगति कर रहा है। चीन पाकिस्तान समेत कई अन्य देशों में अपने सैन्य भंडार तैयार कर रहा है।
चीन की नौसेना के पास युद्ध में प्रयोग होने वाले सबसे ज्यादा आधुनिक हथियार है, जिसके जरिए से हाइपरसोनिक्स के हमले आसानी से किए जा सकते हैं। यह मुख्य रूप से पानी के जहाज पर तैनात रहता है। अतः देखा जाए तो पानी के जहाज पर तैनात इस आधुनिक रेल का इस्तेमाल करके 2.5 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से 200 किलोमीटर तक की दूरी के लक्ष्य पर बिल्कुल आसानी से निशाना लगाया जा सकता है।
वैसे तो अमेरिका (Difference Between the Powers of America and China) भी किसी से कम नहीं है, वह भी कई शक्तिशाली और समृद्ध देशों की सूची में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। चीन और अमेरिका को देखते हुए रूस और ईरान भी इसके कई तकनीक को अपनाने की इच्छा जता रही है। लेकिन, फिलहाल चीन इस मामले में सबसे ज्यादा मजबूत है।
चीन का कहना है, कि एयरक्राफ्ट किसी भी तरह के मिसाइल डिफेंस सिस्टम को तोड़ने में सही है। वेवराइडर एक ऐसा एयरक्राफ्ट है, जो हवा में उड़ते समय शॉकवेव में इसका प्रयोग करता है और यह शॉकवेव तब उत्पन्न होती है, जब एयरक्राफ्ट काफी ऊंचाई पर पहुंचकर तेज रफ्तार में उड़ान भरता है।
वहीं अमेरिका के एक पैसिफिक कमांड का कहना है (Difference Between the Powers of America and China), कि हाइपरसोनिक हथियार बनाने के मामले में अमेरिका अपने काम पर चीन से पिछड़ रहा है, उन्होंने कहा कि जब तक अमेरिकी रडार चीनी मिसाइलों को पकड़ सके तब तक वह अमेरिका के जहाजों और सैन्य अड्डों पर हमले कर देंगे ।