
“नींव की ईंट” (Neev ki eat essay) रामवृक्ष बेनीपुरी की सुंदर रचनाओं में से एक है। रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के एक छोटे से गांव बेनीपुरी में सन् 1902 में हुआ था। जब रामवृक्ष बेनीपुरी बहुत छोटे थे तभी उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। उनके माता पिता की मृत्यु के बाद उनका लालन-पालन उनकी मौसी ने किया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उन्हीं के गांव में से हुई थी, लेकिन मैट्रिक पास करने से पहले ही वे महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में कूद पड़े थे, जिसकी वजह से उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। रामवृक्ष बेनीपुरी को लिखने का बहुत शौक था, इसलिए उन्होंने छोटी सी उम्र में ही अखबारों में लिखना प्रारंभ कर दिया था। उन्होनें तरुण, किसान मित्र, बालक, कर्मवीर इत्यादि पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
नींव की ईंट कविता:-
“वह जो चमकीली, सुंदर, सुघड़ इमारत आप देख रहे हैं; वह किसपर टिकी है ?
इसके कंगूरों (शिखर) को आप देखा करते हैं,
क्या आपने कभी इसकी नींव की ओर ध्यान दिया है?
दुनिया चमक देखती है,
ऊपर का आवरण देखती है,
आवरण के नीचे जो ठोस सत्य है,
उसपर कितने लोगों का ध्यान जाता है ?
ठोस ‘सत्य’ सदा ‘शिवम्’ होता ही है,
किंतु वह हमेशा ‘सुंदरम’ भी हो यह आवश्यक नहीं है।
सत्य कठोर होता है,
कठोरता और भद्दापन साथ-साथ जन्मा करते हैं,
जिया करते हैं।
हम कठोरता से भागते हैं,
भद्देपन से मुख मोड़ते हैं
इसीलिए सत्य से भी भागते हैं।
नहीं तो इमारत के गीत हम नींव के गीत से प्रारंभ करते।
वह ईंट धन्य है,
जो कट-छँटकर कंगूरे पर चढ़ती है
और बरबस लोक-लोचनों को आकृष्ट करती है।
किंतु, धन्य है वह ईंट,
जो ज़मीन के सात हाथ नीचे जाकर गड़ गई और इमारत की पहली ईंट बनी!
क्योंकि इसी पहली ईंट पर उसकी मज़बूती और पुख़्तेपन पर सारी इमारत की अस्ति-नास्ति निर्भर करती है।
उस ईंट को हिला दीजिए,
कंगूरा बेतहाशा ज़मीन पर आ गिरेगा।
कंगूरे के गीत गानेवाले हम,
आइए, अब नींव के गीत गाएँ।
वह ईंट जो ज़मीन में इसलिए गड़ गई कि दुनिया को इमारत मिले, कंगूरा मिले!
वह ईंट जो सब ईंटों से ज़्यादा पक्की थी,
जो ऊपर लगी होती तो कंगूरे की शोभा सौ गुनी कर देती!
किंतु जिसने देखा कि इमारत की पायदारी (टिकाऊपन) उसकी नींव पर मुनहसिर (निर्भर) होती है,
इसलिए उसने अपने को नींव में अर्पित किया।
वह ईंट जिसने अपने को सात हाथ ज़मीन के अंदर इसलिए गाड़ दिया कि इमारत सौ हाथ ऊपर तक जा सके।
वह ईंट जिसने अपने लिए अंधकूप इसलिए कबूल किया कि ऊपर के उसके साथियों को स्वच्छ हवा मिलती रहे, सुनहली रोशनी मिलती रहे।
वह ईंट जिसने अपना अस्तित्व इसलिये विलीन कर दिया कि संसार एक सुंदर सृष्टि देखे।
सुंदर सृष्टि! सुंदर सृष्टि हमेशा से ही बलिदान खोजती है, बलिदान ईंट का हो या व्यक्ति का।
सुंदर समाज बने इसलिए कुछ तपे-तपाए लोगों को मौन-मूक शहादत का लाल सेहरा पहनना है।
शहादत और मौन-मूक! जिस शहादत को शोहरत मिली, जिस बलिदान को प्रसिद्धि प्राप्त हुई, वह इमारत का कंगूरा है,
मंदिर का कलश है।
हाँ, शहादत और मौन-मूक! समाज की आधारशिला यही होती है।
ईसा की शहादत ने ईसाई धर्म को अमर बना दिया, आप कह लीजिए।
किंतु मेरी समझ से ईसाई धर्म को अमर बनाया उन लोगों ने, जिन्होंने उस धर्म के प्रचार में अपने को अनाम उत्सर्ग (कुर्बान) कर दिया।
उनमें से कितने ज़िंदा जलाए गए,
कितने सूली पर चढ़ाए गए,
कितने वन-वन की ख़ाक छानते हुए जंगली जानवरों का शिकार हुए,
कितने उससे भी भयानक भूख-प्यास के शिकार हुए।
उनके नाम शायद ही कहीं लिखे गए हों –
उनकी चर्चा शायद ही कहीं होती हो।
किंतु ईसाई धर्म उन्हीं के पुण्य प्रताप से फल-फूल रहा है।
वे नींव की ईंट थे,
गिरजाघर के कलश उन्हीं की शहादत से चमकते हैं।
आज हमारा देश आज़ाद हुआ सिर्फ़ उनके बलिदानों के कारण नहीं,
जिन्होंने इतिहास में स्थान पा लिया है।
देश का शायद ही कोई ऐसा कोना हो,
जहाँ कुछ ऐसे दधीचि नहीं हुए हों,
जिनकी हड्डियों के दान ने ही विदेशी वृत्रासुर का नाश किया।
हम जिसे देख नहीं सकें वह सत्य नहीं है,
यह है मूढ़ धारणा! ढूँढ़ने से ही सत्य मिलता है।
हमारा काम है, धर्म है, ऐसी नींव की ईटों की ओर ध्यान देना।
सदियों के बाद हमने नई समाज की सृष्टि की ओर कदम बढ़ाया है।
इस नए समाज के निर्माण के लिये भी हमें नींव की ईंट चाहिए।
अफ़सोस कंगूरा बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है,
नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है।
सात लाख़ गाँवों का नव-निर्माण! हज़ारों शहरों और कारखानों का नव-निर्माण! कोई शासक इसे संभव नहीं कर सकता।
ज़रूरत है ऐसे नौजवानों की, जो इस काम में अपने को चुपचाप खपा दें।
जो एक नई प्रेरणा से अनुप्राणित हों, एक नई चेतना से अभीभूत, जो शाबाशियों से दूर हों, दलबंदियों से अलग।
जिनमें कंगूरा बनने की कामना न हो, कलश कहलाने की जिनमें वासना न हो।
सभी कामनाओं से दूर-सभी वासनाओं से दूर।
उदय के लिये आतुर हमारा समाज चिल्ला रहा है।
हमारी नींव की ईंटें किधर हैं?
देश के नौजवानों को यह चुनौती है!”
—रामवृक्ष बेनीपुरी
नींव की ईंट का अर्थ :-
नींव की ईंट का अर्थ होता है, वैसी वस्तु जो हमें खुली आंखों से दिखाई तो नहीं देती लेकिन उन्हीं के आधार पर उन्हीं की मजबूती से वस्तु खड़ी रहती है, जिसे पूरी दुनिया देख रही होती और उसकी सुंदरता के गुणगान भी गा रही होती है।
इस निबंध में लेखक का कहना है, कि वह जो चमकीली सुंदर शुगर इमारत है, अर्थात वह जो सुंदर आकर्षक इमारत लोगों को दिखाई देती है और लोग उसकी प्रशंसा करते नहीं थकते वैसी, इमारत किसी काम की नहीं होती जब तक उसकी नींव ही ठोस या मजबूत ना हो। लेखक का कहना है, कि सत्य चीजें प्राय: शिवम होती है लेकिन वह हमेशा सुंदरम हो यह जरूरी नहीं होता। सत्य प्राय: ठोस या कड़वी होती है, जिसे यदि इंसान स्वीकार कर ले तो उसका कल्याण ही होगा परंतु यह जरूरी नहीं होता कि वह सुंदर भी हो।
कभी-कभी सच बहुत भद्दा और कठोर होता है, जिसे कोई देखना ही नहीं चाहता और यही कारण है कि लोग सच्चाई से आंखें चुराने लग जाते है।
वो कहते हैं ना सुंदरता हमेशा दूसरे लोगों को अपनी और आकर्षित करती है, लेकिन इमारत के कंगूरे भी दिखने में अच्छे ही लगते हैं, उनकी बाहरी बनावट, आकृति सब सुंदर होती है। वह अपनी तरफ सब का आकर्षण खींचने में कामयाब भी होती है लेकिन नींव की ईंट जो सुंदर कंगूरे के बेहद नीचे कहीं गडी होती है, उसे कोई भी नहीं देख पाता और शायद वह खुद भी नहीं चाहता कि कोई उसे देखें और उसकी कोई प्रशंसा करें।
यही कारण है कि मनुष्य का ध्यान नींव की ईंट पर कभी नहीं जाता बल्कि उसके कंगूरे की ओर जाता है जो सिर्फ एक दिखावा और छलावा होता है।
इमारत पर लगे कंगूरे को देखकर अधिकतर लोग खुश हो जाते हैं और उसकी प्रशंसा भी करते हैं, इसका अर्थ स्पष्ट है कि, मनुष्य प्रसिद्ध होने या प्रशंसा पाने या समाज में अपने स्वार्थ और लालच के लिए अपना योगदान देने को तत्पर रहते हैं लेकिन वहीं जहां समाज में त्याग और बलिदान देने की बात आती है तो वे पीछे हट जाते हैं, क्योंकि उन्हें इस बात का ज्ञान होता है कि नींव की ईंट बनने पर उन्हें किसी भी प्रकार का लाभ नहीं होगा इसलिए वैसे लोग नींव की ईंट बनने से अच्छा कंगूरे की ईंट बनना ही पसंद करते हैं।
आज के समय में लोग अपनी बाहरी खूबसूरती को दर्शाते हैं। वह अपनी बनावटी सुंदरता से लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाब होते हैं।
हालांकि एक व्यक्ति की ऊपरी खूबसूरती कोई महत्व नहीं रखती जब तक उसका आन्तरिक विचार अच्छा ना हो। एक व्यक्ति के जीवन में उसकी बहरी खूबसूरती से अधिक उसके अंदर की सुंदरता महत्त्व रखती है।
जिस प्रकार एक इमारत खड़ी करने में हमें नींव की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार किसी मनुष्य के जीवन में भी नींव की अत्यंत आवश्यकता होती है। यदि नींव ही ना हो तो उनकी ढांचे का कोई मोल नहीं होता क्योंकि बिना नींव के वो खड़ी नहीं हो सकती।
विद्यार्थी के जीवन में नींव की ईंट का महत्व :-
एक विद्यार्थी के जीवन में भी नींव की ईंट का अत्यंत महत्त्व होता है। यदि उनकी नीव ही मजबूत ना हो तो वह आगे नहीं चल पाएंगे।
जिस तरह इमारत को मजबूती से खड़े रखने के लिए नींव की आवश्यकता होती है, उसी तरह एक विद्यार्थी को भविष्य में कुछ बनने के लिए मजबूत नींव की आवश्यकता होती है।
एक विद्यार्थी को अपने आज का बलिदान करना ही होगा ताकि वे अपने आने वाले कल को और बेहतर बना सके अपने भविष्य को बेहतर बनाने के लिए विद्यार्थी को सबसे पहले सही नींव की आवश्यकता होगी। आज के समय में अधिकतर छात्र दिखावे के शिकार है, उन्हें लोगों के सामने बड़ी-बड़ी बातें बोलना और दिखावा करना अच्छा लगता है मुझे ऐसा लगता है कि दिखावा करने से वे बहुत काबिल समझे जाएंगे परंतु ऐसा नहीं है, उन्हे इस बात का ज्ञान अवश्य होना चाहिए की दिखावे से कुछ हासिल नहीं होगा। उन्हें अपना सब कुछ छोड़कर केवल शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि वे अपना कल और बेहतर कर सकें।
भारत के नव-निर्माण में नींव की ईंट की आवश्यकता
यहां ईसाइयों को अमर का दर्जा दिया गया है, क्योंकि उन लोगों के धर्म के प्रचारक ने खुद को आपने धर्म के लोगों के लिए कुर्बान कर दिया और ईसाई धर्म पुनः फल फूल रहा है। आज हमारा देश उन महान लोगों की वजह से ही आजाद हुआ है जो बिना किसी स्वार्थ और लालच के अपने देश के नाम पर खुद को बलिदान कर दिया था। उनमें से किसी का नाम इतिहास में दर्ज है तो शायद हजारों से भी ज्यादा ऐसे लोग होंगे जिनका नाम इतिहास में दर्ज भी नहीं हुआ है। अतः: वैसे प्रसिद्ध और महान इंसान जो बेनाम रहकर भी देश के लिए मर मिटे वैसे लोगों को आज हम सलाम करते हैं।
21वीं शताब्दी में भारत के नव निर्माण का कार्य भी अति आवश्यक है परंतु क्या यह मुमकिन है? आज जितने भी देश के शासक हैं वे सब अपने स्वार्थ में लीन है।
वे लोग केवल खुद की जेब भरने के बारे में ही सोचते हैं। पूरे देश में बेरोजगारी, गरीबी और अशिक्षा फैली है परंतु इससे उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता और जब तक ऐसे लोग हमारे देश में शासक के तौर पर कार्य करेंगे हमारा देश कभी प्रगति की ओर नहीं जाएगा।
अतः ऐसे लोग जो भारत के नवनिर्माण में अपने आप को सौंप दें और दिखावे की प्रशंसा और लालच के चक्कर में ना फंसे और एक लक्ष्य के साथ अपना कार्य करें तभी हमारा देश प्रगति की ओर बढ़ेगा।
निष्कर्ष:
इस कविता से हमें यह सीख मिलती है की हमें भविष्य में कभी भी दिखावा वाला कार्य नहीं करना चाहिए और आने वाले नए नव युवकों को कंकूरा बनने से अच्छा नींव की ईंट बनकर देश को प्रगति की ओर ले जाना चाहिए।
आज प्रत्येक व्यक्ति नौजवानों को उनके कर्तव्य की याद दिला रहा है तथा आज के नौजवानों से बड़ी बड़ी उम्मीदें लगाई जा रही है और यह बात सत्य भी है कि यदि देश में युवक अपनी जिम्मेदारियों को भलीभांति समझ जाए और अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करें तो हमारे देश का विकस कोई दूर नहीं है। परंतु बड़ों-बुजुर्गों को भी अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए उन्हें युवाओं को सही मार्गदर्शन दिखाना चाहिए और उनकी प्रतिभा और शक्ति का इस्तेमाल अपने स्वार्थ और लालच के लिए नहीं करना चाहिए तथा उनकी जिम्मेदारियों को संभालने में उनकी मदद करनी चाहिए तभी हमारी देश की तरक्की में बढ़ोतरी होगी।