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Essay of Economic Reforms in India in Hindi

भारत अपने आप में एक समृद्ध और खुशहाल देश है ।परंतु कुछ सालों पहले भारत की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। भारत बाकी देशों से विकास व समृद्धि के मामले में काफी पीछे था। भारत में उस समय आर्थिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। क्योंकि उस समय भारत मे विदेशों से काफी लागत थी । बजट घाटा अत्यधिक उत्पन्न हो गया था। तब ऐसी स्थिति में कांग्रेस सरकार में तत्कालीन उदारीकरण का नया- नया मार्ग अपनाया था। जिससे की बजट घाटे पर नियंत्रण किया जा सके और विदेशों की लागत की पूर्ति किया जा सके। कांग्रेस सरकार द्वारा बहुत सारे कार्यक्रम अपनाए गए थे जिससे कि भारत की आर्थिक सुधार हो सके।

भारत में आर्थिक सुधार की प्रक्रिया जुलाई सन 1991 में स्पष्ट रूप से लागू की गई थी। इसके अंतर्गत विभिन्न कार्यक्रम को अपनाएं गए थे जैसे कि – इसके तहत एलपीजी, निजीकरण वैश्वीकरण उदारीकरण, तथा कांग्रेस सरकार द्वारा निकाले गए कार्यक्रम स्थिरीकरण कार्यक्रम और ढांचागत समायोजन कार्यक्रम भी अपनाए गए थे। स्थिरीकरण कार्यक्रम अल्पकालीन होता है जिसके अंतर्गत प्रबंधन मांग पर अधिक जोर दिया जाता है ताकि इससे बजट घाटे पर नियंत्रण किया जा सके। परंतु ढांचागत समायोजन कार्यक्रम मध्यकालीन होता है इसके अंतर्गत पूर्ति प्रबंधक पर अधिक बल दिया जाता है और सभी आर्थिक क्षेत्रों जैसे उद्योग, विदेश व्यापारी ,कृषि सामाजिक क्षेत्र,इंफ्रास्ट्रक्चर, वित्त आदि की सहायता से व्यापक परिवर्तन सुधार करके अर्थव्यवस्था के कार्य कुशलता को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है।

आर्थिक सुधार के तरीके:-

भारत में अर्थव्यवस्था व आर्थिक सुधार के लिए बहुत सारे कार्यक्रम व तरीके अपनाए गए हैं। जिससे कि भारत के अर्थव्यवस्था व परिस्थितियों की कार्य कुशलता में वृद्धि आए। परंतु आर्थिक सुधार का एक पक्ष बहाय होता है तो दूसरा पक्ष आंतरिक होता है और इन दोनों की सहायता से ही भारत की आर्थिक सुधार में वृद्धि हो सकती है। तो आइए हम जानते हैं कि बहाय और आंतरिक क्या होता है :-

1. बहाय पक्ष:-

बहाय पक्ष में अधिकतर वैश्वीकरण होता है। इसके अंतर्गत वैश्वीकरण को अधिकतर रूप में बढ़ावा दिया जाता है। इसके तहत विदेशी पूंजी, विदेशी टेक्नालॉजी तथा विदेशी व्यापार आदि की सहायता लेकर वैश्वीकरण की कार्यकुशलता में वृद्धि लाने का प्रयास किया जाता है जिससे कि भारत की आर्थिक सुधार हो सके। लेकिन भारत में यह कार्य को अनियंत्रण तरीके से ना अपना कर नियंत्रण और सीमित गुण आधारित तरीके से करने की नीति अपनाई है। इसीलिए इसे केलीब्रेटेड- ग्लोबलाइजेशन की नीति कहा गया है। बहाय पक्ष कार्य के अंतर्गत विदेशी सहयोग  लेते समय इस बात का विशेष ध्यान दिया जाता है कि इससे विदेशी उद्योगों को किसी भी प्रकार की हानि न पहुंचे, इसके अंधाधुधं प्रयोग के कारण घरेलू उद्योगों को नुकसान ना पहुंचे। इसीलिए बहाय पक्ष के कार्य को करते समय सावधानी व सतर्कता बरतना बहुत ही आवश्यक होता है।

2. आंतरिक पक्ष:-

आंतरिक पक्ष के अंतर्गत अर्थव्यवस्था को आंतरिक रूप से बढ़ावा दिया जाता है जिससे कि देश की आर्थिक सुधार संभव हो सके। आंतरिक पक्ष के तहत कृषि, उद्योग ,परिवहन आदि के विकास में अधिक ध्यान दिया जाता है। आंतरिक पक्ष , बहाय पक्ष की तरह हि आर्थिक सुधार पर विशेष ध्यान देता है। इस प्रकार के कार्य को बाहरी मदद की जरूरत नहीं होती यह कार्य अपने देश में किया जाता है। इसे भी बड़ी सावधानी व  सतर्कता के साथ किया जाता है, ताकि इससे किसी को भी किसी भी प्रकार की हनी ना पहुंचे। और इस कार्य से देश की आर्थिक व्यवस्था में सुधार हो ।

आर्थिक सुधार करने का प्रयास:-

भारत में आर्थिक सुधार करने के लिए कई प्रकार के अलग अलग तरीके अपनाए गए हैं। भारत सरकार द्वारा नये-नये कार्यक्रम को आयोजित करके आर्थिक सुधार करने का प्रयास किया गया है। यह बात स्पष्ट करना बहुत ही जरूरी है कि सन् 1991 के बाद देश के सभी सरकारों द्वारा आर्थिक सुधार करने का संकल्प लिया गया था। और इस की महत्वता को ध्यान में रखते हुए इस संकल्प को स्वीकार किया था। सरकार ने 1999 से 2004 तक आर्थिक सुधार की कार्यकलाप को जारी रखा था। और सरकार द्वारा हर कठिनाई को सहते हुए आर्थिक सुधार मे अपने कदम आगे बढ़ाते रहने का भरपूर प्रयास किया था। लेकिन सरकार को जिस प्रकार के  सुधार की आशा थी उस प्रकार का  सुधार नहीं हो पाया क्योंकि लोगों को यह लगने लगा कि वर्तमान सरकार द्वारा आर्थिक सुधार के प्रयास में वृद्धि नहीं हो रहा है और इससे कार्यकाल मे आर्थिक सुधार बिल्कुल रुक सा गया है। परंतु सरकार द्वारा आर्थिक सुधार का प्रयास जारी रहा। इसीलिए उन्होंने विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, बीमा सुधारो ,पेंशन सुधारों, श्रम सुधार तथा विनिवेश क्रियाओं आदि का समर्थन करते हुए आर्थिक सुधार करने की कोशिश की थी। आगे एक ठोस और पारदर्शी आर्थिक सुधार कार्यक्रम सफल क्रिया से ही भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश की आर्थिक समस्याओं का समुचित हल निकाला जा सकता है।

आज के समय में आर्थिक सुधार का महत्व:-

आज के युग में आर्थिक सुधार एक देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण बात बन चुका है। आज के युग में हर देश अपने आप को और बेहतर बनाने के प्रयास में लगा हुआ है ,नए-नए आविष्कार करके व नए- नए तरीके अपनाकर अपने देश को अन्य देशों से बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है। परंतु यह कोशिश आर्थिक जरूरतों के बिना अधूरी है। एक देश को विकास करने के लिए अर्थव्यवस्था का होना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है । अर्थव्यवस्था से देश में रहने वाले देशवासियों के भविष्य पर भी बहुत प्रभाव पड़ता है। आर्थिक व्यवस्था से ही देश के विकास के लिए नए-नए  योजनाओं का प्रबंध किया जाता है। बिना आर्थिक सहायता देश का विकास नहीं हो पाता है। अपने देश को और बाकी देशों से बेहतर बनाने के लिए सलाहकार व समझदार जैसे व्यक्तियों की जरूरत होती है जिससे वे अपने देश को बेहतर बनाने के लिए कुछ नया करने का प्रयास करते हैं। परंतु यह सब बिना आर्थिक सुधार के संभव नहीं है। इसीलिए आर्थिक सुधार होना किसी भी देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण बात होती है।

उपसंहार:-

जैसा कि हमने आपको बताया कि एक देश का विकास करने के लिए आर्थिक सुधार होना बहुत ही जरूरी होता है। परंतु इस सुधार को करने के लिए सिर्फ सरकार की जरूरत नहीं होती बल्कि एक जिम्मेदार नागरिक की भी जरूरत होती है। यह आज के समय में बहुत महत्वपूर्ण जरूरत बन चुकी है। विदेशों से अपना संपर्क बनाए रखने के लिए,  विदेशों से  दोस्ती करने के लिए आर्थिक सुधार होना बहुत ही जरूरी होता है, इससे देश को विकास के मार्ग पर अग्रसर होने के लिए बहुत सहायता मिलता है। इसीलिए सरकार के साथ-साथ नागरिकों को भी कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है जैसे कि वह समय पर टेक्स पटाए, सरकार से घपला ना करें आदि इन जैसे बातों का ध्यान देना बहुत महत्वपूर्ण है। इन सब कामों को यदि नागरिक ईमानदारी से करें तो देश की आर्थिक व्यवस्था में कुछ सुधार हो सकता है।