आज हमारा देश बहुत तेजी से विकसित हो रहा है ,हर कोई अपने सपनों को पूरा करने में लगा हुआ है। जहां देश इतनी तरक्की कर रहा है वहीं देश में कुछ ऐसे भी कार्य हो रहे है जो मानवता को शर्मिंदा करता है।वर्तमान समय में जहां जागरूकता इतनी ज्यदा बढ़ रही है वहीं लोगों के बीच अंधविश्वास और जाती भेदभाव की भावना घटने के जगह बढ़ते जा रही है।आज भारत, चंद्रमा और मंगल ग्रह जैसे ग्रहों पे कदम रख रही है तो वहीं भेदभाव की खोखली बातो से लोग आपस में ही हिन की भावना रख रहे है।जाती और सामाजिक मुद्दों से लोग आपस में ही लड़ रहे है और अपनेपन के बीच में दरार डाल रहे है। जाति भेदभाव वैसे तो एक सामाजिक मुद्दा है जो कि इन लोगों ने अपने और नीची जातियों के बीच में बना लिया है। वे उन लोगों से भेदभाव करते हैं जो उनके बराबर के नहीं या फिर उनसे कम पैसे कमाते हैं या फिर रंग रूप में उनसे ज्यादा सुंदर नहीं है। इन्हीं सब चीजों के कारण लोग आपस में भेदभाव और जाति व्यक्त करने लग गए हैं। हाला की जाति और भेदभाव को हमारे कई सारे देश के पुत्रों ने हटाने की कोशिश की परंतु वे असफल रहे। यदि कुछ हद तक भावना कम भी हो गई तो खत्म नहीं हुई।
जाति भेदभाव और हिन भावना:-
भारत देश में जाति भेदभाव की भावना कई युगों से चली आ रही है। कहा जाता है कि जब देवता ने धरती का संचार किया तब से ही जाति और लोगों के बीच में हीन भावना उत्पन्न हो गई। एक दूसरे के रहने के ढंग को एक दूसरे के रूप रंग को और एक दूसरे की कमाई को अपने से आकना और खुदसे बराबरी करना यह सब लोगों के बीच में दरार डालने का काम कर रही है। आम तौर पर देखा जाए तो बड़े से बड़े राज्य और छोटे से छोटे कस्बों में जाति भेदभाव और हिना की भावनाएं एक दूसरे में इतनी ज्यादा है कि कोई किसी को पानी तक देना पसंद नहीं करता। और वहीं दूसरी ओर लोग अपना अच्छाई का नकाब पहनकर बड़े-बड़े प्रलोचन हाकती है। एक और तो देश की भलाई और जनता की सेवा के झूठे वादे करते हैं दूसरी ओर उसी जनता से बात तक करना पसंद नहीं करते। देश में नेताओं और सरकार द्वारा किया गया यह एक ऐसा नाटक है जो देश को बर्बाद कर देगा।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर द्वारा 1950 में बनाया गया ऐसा लाखों कॉन्स्टिट्यूशन और कानून है जो जाति भेदभाव के खिलाफ है। उनके द्वारा यह माना गया है कि हर व्यक्ति को उसके अधिकार के साथ जीना उसका हक है। उनके हक के लिए उन्होंने अपने देश के बड़े-बड़े हस्तियों से लड़ लिया नीचे और जातियों के बीच में फर्क करते थे उनको भी धूल चटा दी। ऐसे महान शख्सियत के द्वारा बनाए गए कानूनों को आजकल सिर्फ किताबों में पढ़ा जाने लगा है निभाता कोई नहीं।
भेदभाव एक अंधविश्वास है:-
जाति भेदभाव को अंधविश्वास के रूप में भी देखा जाता है। लोगों का मानना है कि जब भगवान हमें भेदभाव नहीं करते तो हम आपस में भाई बहन हो करके भेदभाव क्यों करें। देश पर तैनात रहने वाले वह जवान जाति भेदभाव तो नहीं देखते , सब का इलाज करने वाला डॉक्टर जाति भेदभाव तो नहीं देखता, देश की भलाई करने वाला सरकार भेदभाव नहीं देखता, यहां तक की हम जिससे अपने लिए सुरक्षा की पॉलिसी खरीदते हैं वह भी हमारी जातीय भेदभाव नहीं देखता।तो हमें कैसे कह सकते हैं कि जाति भेदभाव हमारे देश में रखना चाहिए या नहीं।हो सकता है कि जाति भेदभाव बड़े-बड़े महाराजाओ द्वारा किया जाता है परंतु आज के समय में जहां आधुनिकता इतनी ज्यादा बढ़ गई है जाति भेदभाव करना एक अपराध साबित हो रहा है।
जाति भेदभाव को अंधविश्वास कहना कोई गलत नहीं है क्योंकि यहां हर कोई उनको अपने दम पर चल रहा है जो बनाने वाले इस दुनिया में ही नहीं है। जब जाति भेदभाव का कोई सुबूत ही नहीं मिलता तो लोग आंख बंद करके इसको क्यों मान रहे हैं? आपस में लड़ने और झगड़ने से कुछ नहीं मिलने वाला यह क्यों नहीं समझते? इसलिए जाती भेद भाव को देश में अंधविश्वास माना जा रहा है।
जाति विभाजन एक बुरी प्रथा:-
प्राचीन काल में अगर देखा जाए तो जाति भेदभाव और हिना की भावना ना केवल नीची जातियों से बल्कि दूसरी जातियों से भी किया जाता था। परंतु आज के समय में हर कोई एक दूसरे से जाति भेदभाव और हिना भावना रखने लगा है। जाति विभाजन सबसे पहले राजाओं के समय में हुआ करता था तब व्यक्तिगत मामलों में कार्यों को बांटा गया था। जैसे कि जो उच्च जाति के हैं और जो राज परिवार से हैं वह राजा होंगे जो उनसे नीचे है या फिर ब्राह्मण या मंत्रालय में आते हैं तो वह उन्हें मंत्री और सज्जन मानते थे। और जो क्षत्रिय होते थे उन्हें मंत्री लोगों से नीचे की जाति और जो आम आदमी होते थे उन्हें सबसे नीचे दे दिया जाता था। परंतु आज के समय में जाति प्रथा को एक अलग स्तर दे दिया गया है। यहां हर ऊंचाई जाति का व्यक्ति नीची जाति से घृणा करता है।
जाति की प्रथा वैसे तो हटाने की बहुत कोशिश की गई परंतु आज भी लोग उसको कहीं ना कहीं अपने और लोगों के बीच में देखते हैं। जाति प्रथा को हटाने के लिए डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने कई सारे कोशिशें की। वे खुद भी निजी जाति के होने के कारण ऐसी बहुत सारे लोगों द्वारा उन्हें बहुत सारे वेटनाए दिया गया था।लोग उनसे बात करना पसंद नहीं करते थे उनके साथ है ना पसंद नहीं करते थे इन सब को देख करके उनके मैंने बस यही आता था की लिखी जाती हो ना क्या मेरा कुसूर है। बाद में उच्च कोटि की पढ़ाई करने के बाद वे इस जाति प्रथा को हटाने में लग गए। पूरी जीवन केवल जाति को और जाति विभाजन को दूर करते करते आखिर उन्होंने इसे खत्म कर दिया ।परंतु आज भी लोगों के मन में कहीं ना कहीं जाती भेदभाव की भावना है।
निष्कर्स:-
जाति विभाजन ऐसे एक बुरी प्रथा है परंतु लोग अभी से नहीं मानते हैं।आधुनिकता जितना बढ़ते जा रही है लोगों के मन में बुरी चीज है उतनी ज्यादा आते जा रही है। यही कारण है कि आम देशों के मुकाबले भारत देश ज्यादा तरक्की नहीं कर पा रहा। हो सकता है कि कुछ राज्यों में जाति विभाजन का आज भी माना जाता है परंतु पूरी तरीके से इसके आवेश में आ जाना यह गलत है। लोगों को उनकी जाति के हिसाब से उनके साथ व्यवहार करना यह सब ही गलत चीजें हैं। इन सब चीजों के कारण विद्रोह और गलतफहमियां बढ़ती है जिस कारण लोग आपस में मिलकर रहना बंद कर देते। आपसी मामलों में जाति भेदभाव के वजह से दरार पड़ जाती है और लोग एक दूसरे से घृणा और हिना की भावना रखते हैं। यही कारण है कि देश में जो नीचे जाती है वह बढ़ती जा रही है और ऊंची जातियां घटती जा रही है। सरकार द्वारा भी नीची जातियों को बहुत सारी सुख सुविधाएं दी जा रही है जबकि उसे जातियों को नहीं कम से कम यह समझ कर ही लोगों को जाति भेदभाव की हीन भावना को हटाना चाहिए।