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Essay On Digital Shiksha Ek Vardan Hai Ya Abhishap | डिजिटल शिक्षा एक वरदान है या अभिशाप पर निबंध

Essay On Digital Shiksha Ek Vardan Hai Ya Abhishap

Essay on Digital Shiksha ek Vardan hai ya Abhishap की जरूरत कई विद्यार्थियों को होती है।

जैसा कि आज डिजिटल शिक्षा का चलन बहुत ज्यादा बढ़ता जा रहा है ऐसे में डिजिटल शिक्षा और विद्यालय में मिलने वाली शिक्षा के बीच तुलना होना एक आम बात है।

इसलिए विद्यार्थियों के लिए डिजिटल शिक्षा एक वरदान है या अभिशाप विषय पर एक निबंध लेकर आए हैं। इस निबंध में डिजिटल शिक्षा के लाभ और हानि को गहराई से समझाने की कोशिश की गई है।

इस निबंध को उपयोग कक्षा 1,2,3,4,5,6,7,8,9,10,11 और 12 वी कक्षा तक के सभी विद्यार्थी कर सकते हैं।

Short Essay On Digital Shiksha ek Vardan hai ya Abhishap | डिजिटल शिक्षा एक वरदान है या अभिशाप पर निबंध

प्रस्तावना

2015 के बाद से हमारे देश में इंटरनेट की क्रांति आई है। पिछले कुछ वर्षों में इंटरनेट उपयोगकर्ता की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ी है। जिसका असर यह हुआ है कि आज हम अपने रोजमर्रा की बहुत जरूरी काम इंटरनेट की मदद से ही करते हैं।

लेकिन फिर भी पढ़ाई की जब बात आती है तो वहां पर शिक्षा देने के परंपरागत तरीकों को ही तरजीह दी जाती थी, लेकिन कोरोना वायरस ने जिस तरह से हमारे देश के साथ-साथ पूरी दुनिया में तबाही मचाई है उसके बाद डिजिटल शिक्षा का चलन ज्यादा बढ़ गया है।

आज इंटरनेट की वजह से ही बच्चे अपने अध्यापकों से जुड़े हुए हैं और पढ़ाई से संबंधित क्रियाकलाप करते है।

डिजिटल शिक्षा क्या है?

डिजिटल शिक्षा का अर्थ है शिक्षा में ऐसे उपकरणों और तकनीकों का उपयोग करना जो बहुत नवीन हो। ऐसे तकनीक और उपकरणों के माध्यम से शिक्षकों को बहुत सुविधा मिलती है। वो विभिन्न नई तकनीकों का उपयोग करके विषय को और अधिक अच्छे से समझा सकते हैं।

डिजिटल शिक्षा है आज की जरूरत

पूरा देश जिस तरह से कोरोनावायरस की चपेट में आया है उसकी वजह से न सिर्फ औद्योगिक जगत प्रभावित हुआ है बल्कि शैक्षणिक संस्थान भी बहुत बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।

कोरोनावायरस का प्रसार जैसे जैसे बढ़ता गया वैसे ही इस बात की जरूरत महसूस की जाने लगी कि विद्यालय और कॉलेजों को बंद करना ही बेहतर है। लेकिन दूसरी तरफ चिंता का विषय है हमारे देश के भविष्य अर्थात छोटे-छोटे बच्चे आखिर कब तक शिक्षा से दूर रहेंगे?

इसका सिर्फ एक ही समाधान नजर आया, और वह है डिजिटल एजुकेशन। यदि बच्चों को उनके घरों में ही जरूरी शिक्षा दी जा सके कुछ जरूरी तकनीकों का उपयोग करके तो इससे बेहतर कोई और विकल्प नहीं हो सकता।

बस इसी बात को ध्यान में रखकर हमारे देश में डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा दिया गया और आज देश के अधिकतर विद्यालयों की तरफ से डिजिटल क्लास भी ली जा रही हैं।

निष्कर्ष

कोरोना वायरस ने हमें भविष्य का आईना दिखाया है। कही न कही अब हम यह समझने लगे है कि डिजिटल शिक्षा का वजूद भी संभव है और इसे बढ़ावा देने में ज्यादा बुराई नही है।

Short And Long Essay On Digital Shiksha ek Vardan hai ya Abhishap | डिजिटल शिक्षा एक वरदान है या अभिशाप पर निबंध

प्रस्तावना

धीरे-धीरे ही सही लेकिन अब वह दौर जाता हुआ दिखाई दे रहा है जहां शिक्षा का मतलब ब्लैकबोर्ड, चॉक और डस्टर हुआ करता था। जहां शिक्षा हासिल करने की एक मात्र जगह विद्यालय ही हुआ करती थी।

आज डिजिटल शिक्षा का जमाना है। शिक्षक भी अपने छात्रों को पढ़ाने के लिए डिजिटल माध्यम का चयन कर रहे हैं। कई बड़े-बड़े विद्यालय एवं महाविद्यालय डिजिटल शिक्षा को पूरी तरह से अपना चुके हैं।

दुनिया और हमारे देश में जिस तरह से डिजिटल शिक्षा की स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है उसे देखकर यह कहा जा सकता है कि डिजिटल शिक्षा का भविष्य बहुत उज्ज्वल है लेकिन इसके बावजूद भी डिजिटल शिक्षा में कई खामियाँ हैं जिन्हें दूर करने की जरूरत है।

डिजिटल शिक्षा के सामने चुनौतियाँ

डिजिटल शिक्षा का भविष्य भले ही आज उज्जवल दिख रहा है लेकिन इसके सामने कई चुनौतियाँ खड़ी हुई हैं।

इन चुनौतियों से पार पाए बिना पारंपरिक शिक्षा का विकल्प डिजिटल शिक्षा नहीं बन सकती। डिजिटल शिक्षा के समक्ष खड़ी कुछ चुनौतियाँ इस प्रकार है:-

पढ़ाई के लिए जगह का अभाव

विद्यालय एक ऐसी जगह है जहां पर सिर्फ अध्ययन और अध्यापन से जुड़ा हुआ कार्य किया जाता है। कोई भी विद्यार्थी पूरी तन्मयता से 8 घंटे ध्यान एकाग्र होकर पढ़ाई करता है।

पर यदि विद्यार्थी घर में रहे और उन्हें डिजिटल तरीके से पढ़ाया जाए तो उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती जगह के अभाव की है।

2011 की जनगणना में यह बताया गया है कि हमारे देश में ऐसे 71% घर हैं जहां 3 या 3 से अधिक लोगों के बीच सिर्फ दो ही कमरे हैं। ऐसे में यह कैसे संभव है कि कोई विद्यार्थी 8 घंटे पढ़ाई कर पाएगा और उसकी पढ़ाई में कोई भी व्यवधान उत्पन्न नहीं होगा।

इंटरनेट की सुविधा का अभाव

2017-2018 में नेशनल सैंपल सर्वे में यह बताया गया था कि करीब 42% शहरी परिवार और 15% ग्रामीण परिवारों के पास इंटरनेट की सुविधा मौजूद है।

इस प्रकार का डाटा थोड़ी भयावह है, खासकर डिजिटल शिक्षा को ध्यान में रखते हुए, क्योंकि ऐसी परिस्थिति में कभी करीब दो तिहाई बच्चे डिजिटल शिक्षा प्राप्त ही नहीं कर पाएंगे और इसका सबसे ज्यादा प्रभाव गरीब, मजदूर और पिछड़े जाति के परिवारों पर पड़ेगा।

इंटरनेट की धीमी रफ्तार

ऑनलाइन शिक्षा हासिल करने के लिए विद्यार्थी अपने शिक्षक के साथ वीडियोकॉल के जरिए बात करते है, उनके द्वारा पढ़ाए गए पाठ को पढ़ते है और अपने मन में उठ रही शंकाओं का समाधान भी वीडियोकॉल के जरिए ही करते है।

इसलिए यह बहुत ज्यादा जरूरी है कि इंटरनेट की गति बहुत अच्छी रहे और स्थिर रहे ताकि संदेशों का आदान-प्रदान सही तरह से हो सके।

पर हमारे देश में इंटरनेट की स्पीड बहुत बड़ी समस्या है। एक आम वीडियोकॉल में हम यह देखते हैं कि इंटरनेट बहुत परेशानियां उत्पन्न करता है।

तस्वीरें स्पष्ट तौर पर नहीं दिखाई देती है,ना ही आवाज हमें स्पष्ट तौर पर सुनाई देती है। ऐसे में विद्यार्थी किस भांति पढ़ाई कर सकेंगे, यह सोचने वाला प्रश्न है।

इसके अलावा हमारे देश के हर क्षेत्र में इंटरनेट की सुविधा एक जैसी नहीं है। जम्मू कश्मीर जैसे क्षेत्रों में दंगों की वजह से इंटरनेट की सेवा अधिकतर बंद ही रहती है। ऐसे में डिजिटल एजुकेशन का विकल्प कुछ छात्रों के लिए बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं है।

सामंजस्य का आभाव

विद्यार्थी और शिक्षक के बीच एक गहरा रिश्ता होता है। जब शिक्षक कक्षा में पढ़ाते है तो वह किसी भी विद्यार्थी के हावभाव से यह समझ जाते है कि वह उस विषय को समझ पा रहा है या नही।

इसके अलावा किसी भी विद्यार्थी की कुछ दिक्कत है तो उसकी गतिविधि को देखकर मनःस्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है और फिर समस्या को सुलझाया जा सकता है लेकिन ऑनलाइन शिक्षा में इस बात का अभाव महसूस होगा।

ऑनलाइन शिक्षा से उन बच्चों का बहुत ज्यादा नुकसान होगा जिन्हें शिक्षक की निगरानी की जरूरत पड़ती है।

डिजिटल शिक्षा का भविष्य.

KPMG भारत और गूगल के द्वारा एक रिपोर्ट में यह बताया गया है कि 2021 में भारत मे डिजिटल शिक्षा का बाजार बहुत तेजी से विकास करेगा। भारत मे एक बड़ी आबादी है जो शिक्षा ग्रहण कर रही है।

कोरोना की वजह से जिस तरह से थोड़ा बहुत डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा मिला है उसे देखकर यही लग रहा है कि अब हमारा देश कही न कही यह स्वीकार कर रहा है कि शिक्षा के क्षेत्र में भी आधुनिकीकरण की जरूरत है।

लेकिन राह इतनी भी आसान नही है। कई चुनौतियाँ है जो हमारे सामने खड़ी है।

उपसंहार

भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश मे जहाँ आर्थिक असमानता बहुत अधिक है, सभी लोग के पास टेक्नोलॉजी का बहुत अधिक ज्ञान नही है, वहाँ डिजिटल शिक्षा का प्रसार करना इतना आसान नही है।

हमारे देश मे डिजिटल शिक्षा का संचालन तभी सफल हो सकता है जब उक्त कमियों को दूर किया जाएगा।

Short And Long Essay On Digital Shiksha ek Vardan hai ya Abhishap | डिजिटल शिक्षा एक वरदान है या अभिशाप पर निबंध

प्रस्तावना

आज का युग डिजिटल युग कहा जाए तो कुछ गलत नही होगा क्योंकि हम अपने सभी काम डिजिटल तकनीक के जरिए कर रहे हैं।

लेकिन अभी तक शिक्षा इस तकनीकी के उपयोग से अछूती थी। शिक्षा में डिजिटलीकरण का इतना ज्यादा महत्व नहीं था क्योंकि इसकी कभी जरूरत महसूस नहीं हुई।

पर कोरोनावायरस ने जिस तरीके से भीषण तबाही मचाई है उसके बाद से डिजिटल शिक्षा की जरूरत ही महसूस की जाने लगी है।

कोई भी चीज ना तो पूरी तरह अच्छी होती ना ही पूरी तरह बुरी। उसी तरह डिजिटल शिक्षा के बारे में भी कहा जा सकता है।

कुछ लोगों के मत के अनुसार डिजिटल शिक्षा एक वरदान है वहीं कुछ लोग डिजिटल शिक्षा को एक अभिशाप के रूप में भी देखते,समझते हैं।

डिजिटल शिक्षा के लाभ | Advantages of Digital Education.

डिजिटल शिक्षा के कुछ लाभ निम्नलिखित है:-

निश्चित समय की बाध्यता नहीं

ऑनलाइन शिक्षा या डिजिटल शिक्षा की सबसे खास बात यह है कि इसमें कोई समय की बाध्यता नहीं होती। शिक्षक अपने सुविधा अनुसार छात्रों की जरूरत को ध्यान में रखकर कक्षा ले सकते है।

जबकि विद्यालय में ऐसा नहीं होता। प्रत्येक विद्यालय में पढ़ाई और अवकाश होने का वक्त निर्धारित होता है। जो कभी-कभी छात्रों के लिए मानसिक थकान का कारण बनता है।

पर ऑनलाइन पढ़ाई का समय लचीला होता है। विद्यार्थी और शिक्षक मिलकर तय कर सकते है और किसी भी वक़्त पढ़ाई कर सकते हैं।

विषय को समझाने में आसानी

डिजिटल शिक्षा में नई तकनीकों का उपयोग कर विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं। जैसे जब भूगोल जैसे विषय पढ़ते हैं तो उसमें मानचित्र का बहुत अहम योगदान होता है।

यदि मानचित्र का 3D दृश्य देखने को मिल जाए तो समझ और गहरी हो जाती है। पर विद्यालय में सिर्फ ब्लैकबोर्ड ही उपलब्ध होते हैं।

उनमे शिक्षक के द्वारा नक्शा बनाया जाता है और उसी के माध्यम से विद्यार्थियों को जरूरी जानकारी दी जाती है।

पर इससे नुकसान यह होता है कि कुछ विद्यार्थी उस मानचित्र को इतनी गहराई से नहीं समझ पाते। उसकी कल्पना शक्ति यदि कम है तो वह उस विषय को अच्छे से नहीं समझ पायेंगे।

पर गूगलमैप्स, गूगलअर्थ और विभिन्न ऑनलाइन संसाधनों के उपयोग से भूगोल आदि विषयों को बहुत अच्छी तरह से समझाया जा सकता है।

जरूरी लेक्चर दोबारा देख सकते हैं

डिजिटल शिक्षा में ऑनलाइन शिक्षा के साथ-साथ पूर्व रिकॉर्ड किए गए वीडियो भी विद्यार्थियों को वितरित किए जाते हैं, जिससे विषय को समझना आसान हो जाता है।

प्रत्येक विद्यार्थी इन वीडियो की मदद से कभी भी उस विषय को पढ़ सकते है जबकि विद्यालयों में किसी भी विषय को एक या ज्यादा से ज्यादा दो बार ही पढ़ाया जाता है।

यदि उस वक्त कोई विद्यार्थी विद्यालय में उपस्थित नहीं है तो उसे दोबारा पढ़ने का अवसर नहीं मिल पाएगा। डिजिटल शिक्षा में ऐसा नहीं होता।

विद्यार्थियों के लिए सुरक्षित

डिजिटल शिक्षा की सबसे खास बात यह है कि इसमें हमारा घर ही विद्यालय होता है। किसी विद्यार्थी को शिक्षा ग्रहण करने के लिए कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं होती।

इस वजह से वह काफी सुरक्षित रहते है। हमने विगत कुछ वर्षों में देखा है कि स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के साथ तरह-तरह की घटनाएं हो जाती हैं, जिसकी वजह से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

वैसे तो शिक्षक भगवान का रूप है लेकिन हमने यह भी देखा है कि कुछ शिक्षक विद्यार्थियों के ऊपर शारीरिक अत्याचार करते हैं।

कोई विषय अच्छे से ना बनने पर उन्हें मारते-पीटते हैं लेकिन डिजिटल शिक्षा इन सब परेशानियों से विद्यार्थियों को छुटकारा दिला सकती है।

डिजिटल शिक्षा है बहुत सस्ती

परंपरागत शिक्षा व्यवस्था की तुलना में डिजिटल शिक्षा बहुत ही सस्ती है। डिजिटल शिक्षा ग्रहण करने के लिए हमें कुछ उपकरणों की जरूरत पड़ती है जिन्हें बस एक ही बार खरीदना पड़ता है।

जैसे मोबाइल फोन, पढ़ाई करने के लिए टेबल-कुर्सी और कुछ किताबें। साथ में एक इंटरनेट कनेक्शन जो पूरा 24 घंटे उपलब्ध हो।

चाहे तो पूरे 1 साल के लिए इंटरनेट कनेक्शन ले सकते हैं। मोबाइल फोन भी बार-बार खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी। किताबें भी ऑनलाइन खरीद सकते हैं, या मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं।

वही यदि परंपरागत शिक्षा के खर्चे देखें तो बच्चों को स्कूल भेजने के लिए हमें ट्रांसपोर्ट आदि की जरूरत पड़ती है। किताबें, रफ, कॉपी आदि का खर्चा भी भी प्रतिवर्ष होता ही है।

कागज का इस्तेमाल कम होगा

कागज का सबसे ज्यादा उपयोग सरकारी कामकाज और शिक्षा में ही होता है। कागज लकड़ियों के जरिए बनाया जाता है। इसके लिए हमें पेड़ों से लकड़ी काटना पड़ता है।

पर यदि कागज का उपयोग कम हो जाए तो पेड़ और वातावरण दोनों सुरक्षित रहेंगे। डिजिटल शिक्षा इस चीज का समाधान लेकर आया है।

इसमें कागज की जरूरत लगभग ना के बराबर पड़ती है। हम सभी नोट्स को डिजिटली सुरक्षित कर सकते हैं एवं जरूरत के वक्त उन्हें पढ़ सकते हैं और विषयों को दोहरा सकते हैं।

किताबें भी ऑनलाइन खरीदी जा सकती हैं जो कि पीडीएफ फॉर्मेट में आसानी से मिल जाती हैं। सिर्फ रफ कार्य करने के लिए कुछ चीजों की जरूरत पड़ेगी।

डिजिटल शिक्षा है सुविधाजनक

परंपरागत शिक्षा ग्रहण करने की तुलना में डिजिटल शिक्षा विद्यार्थियों के लिए बहुत ही सुविधाजनक है।

सुबह सुबह उठना, फिर तैयार होकर विद्यालय जाना, उसके बाद 8 से 9 घंटे तक लगातार एकाग्रता के साथ बैठकर सभी विषयों के बारे में जानना और फिर वापस घर आकर स्कूल में दिए गए गृह कार्य को करना।

इन सब के बीच खेलकूद के लिए वक़्त निकालना बिल्कुल भी आसान नहीं होता। कई विद्यार्थी इस दिनचर्या की वजह से मानसिक रूप से थक जाते हैं और वह विद्यालय जाने से कतराने लगते हैं।

जिसका बुरा असर उनकी पढ़ाई पर पड़ता है पर ऑनलाइन शिक्षा इन सब चीजों से निजात दिलाती है। विद्यालय आने जाने में जो समय लगता था वह उसे बचाकर किसी दूसरे कार्य में लगा सकते हैं।

विद्यार्थी अपने माता-पिता के साथ मिलकर समय का प्रबंधन और बेहतर तरीके से कर सकता है और अतिरिक्त समय जो बचता है उसमें कुछ विशेष चीजें सीख सकता है।

यानी कुल मिलाकर कहें कि डिजिटल शिक्षा कहीं ना कहीं एक विद्यार्थी को ज्यादा सुविधाजनक जिंदगी देती है जिसमें वह अपने समय का ज्यादा बेहतर उपयोग कर सकता है।

डिजिटल शिक्षा के दुष्परिणाम | Disadvantages of Digital Education.

डिजिटल शिक्षा के कुछ दुष्परिणाम निम्नलिखित है:-

विद्यार्थी अपनी जिम्मेदारी खुद उठाएं.

कई बड़े विशेषज्ञों का यह कहना है कि प्रत्येक विद्यार्थी का मन चंचल होता है। वह इस काबिल नहीं होते कि खुद के मन पर नियंत्रण करके ऑनलाइन अध्ययन कर सके।

हम विद्यालयों में देखते हैं कि कई विद्यार्थी मौका पाते ही दूसरे मित्रों से बात करने लगते हैं उनका ध्यान पढ़ाई से हट जाता है, पर जब शिक्षक उन पर ध्यान देता है और उन्हें एकाग्र होने के लिए कहता है तब वह फिर सजग होते हैं और पुनः अपना ध्यान चल रहे पाठ पर लगाते हैं।

पर ऑनलाइन शिक्षा में एक शिक्षक के लिए यह बहुत ही मुश्किल है कि वह सभी विद्यार्थियों की गतिविधि पर ध्यान रख पाए।

ऐसे में इस बात की बहुत अधिक संभावना बढ़ जाती है कि विद्यार्थी उस पाठ को इतनी गंभीरता से नहीं समझ रहे हो।

डिजिटल शिक्षा का यही सबसे बड़ा दुष्परिणाम है। यहां विद्यार्थी को खुद ही मन लगाकर पढ़ाई करनी पड़ेगी क्योंकि उन्हें रोकने-टोकने के लिए शिक्षक सामने मौजूद नहीं होता है।

संवाद के सीमित अवसर.

हम विद्यालयों में देखते हैं कि शिक्षक कभी कभी बहुत ही मनोरंजक माहौल कक्षा में तैयार करते हैं। विद्यार्थियों का तनाव दूर करने के लिए कभी-कभी कुछ चुटकुले, प्रेरणादायी किस्से-कहानियां आदि सुनाते हैं।

जिससे विद्यार्थियों का मन एक बार फिर से पढ़ाई के प्रति एकाग्र होता है और फिर पूरे मन से पढ़ाई कर पाते हैं।

कभी कभी ऐसा भी होता है कि पूरे लेक्चर में पढ़ाई से संबंधित विषयों पर बात न होकर अन्य विषयों पर ही चर्चा होती रहती है।

एक विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास के लिए ये सभी चीजें भी बहुत आवश्यक है। पर डिजिटल शिक्षा में इस चीज की कमी जरूर खलती है।

यहां विद्यार्थी और शिक्षक के बीच वार्तालाप के सीमित अवसर है। शिक्षक विषय से संबंधित पाठ पढ़ाते हैं और विद्यार्थी उस पाठ को पढ़ते हैं।

इसके अलावा कुछ बातचीत प्रश्न और उत्तर के दौरान हो पाती है इसके बाद कोई अन्य बातचीत करना थोड़ा मुश्किल होता है।

इससे शिक्षक और विद्यार्थी के बीच जो गहरा लगाव विद्यालयों में बनता है वह डिजिटल शिक्षा के दौरान नहीं बन पाता।

लगातार स्क्रीन देखते रहने की समस्या

विद्यालय में होने वाली पढ़ाई पूरी तरह से प्राकृतिक होती है। यहां पर हम अपनी आंखों से वही सब देखते हैं जो हम दिन भर देख सकते हैं।

वह सब कुछ देखने के लिए हमारी आंखें सहज होती हैं। पर एक मोबाइल स्क्रीन पर या कंप्यूटर स्क्रीन पर 8 से 9 घंटे तक लगातार आंखें गड़ाए रखना एक विद्यार्थी के लिए बहुत मुश्किल है।

खास कर यह देखते हुए कि कई वैज्ञानिक शोध इस बात को पहले भी बता चुके हैं कि कंप्यूटर और मोबाइल की स्क्रीन पर लगातार देखते रहने से हमारे आंखों पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है।

खासकर बच्चों के ऊपर इसके दुष्प्रभाव और भी अधिक होते हैं ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा कहीं ना कहीं विद्यार्थियों की आँख कमजोर करती है।

उनमें सिर दर्द, आंखों में दर्द, नींद की कमी आंखों में जलन जैसी कई अन्य समस्याएं जन्म ले जा सकती है जिससे कहीं ना कहीं उनकी पढ़ाई और स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हो सकता है।

रुक जाएगा सर्वांगीण विकास

विद्यालय सिर्फ विद्या ग्रहण करने की जगह नहीं है, यहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं जिनमें विद्यार्थी बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।

भाषण, नृत्य, लेखन,खेलकूद आदि से संबंधित कई प्रतियोगिताएं साल भर चलती रहती हैं। ऐसी गतिविधियों से विद्यार्थी के अंदर छुपी प्रतिभा निखर कर बाहर आती है।

पर ऑनलाइन शिक्षा में इन सब गतिविधियों के लिए कोई जगह नहीं है जिससे कहीं ना कहीं विद्यार्थी का पूर्ण विकास नहीं हो पाता।

विद्यार्थी जीवन बहुत अहम होता है, जिसमें एक बच्चे को अलग अलग विषयों की जानकारी दिया हैं जो उसके भविष्य को बेहतर बनाने में उसकी मदद करेंगे और वह एक अच्छा इंसान बन पाएगा।

विद्यार्थी को सिर्फ किताबी ज्ञान की जरूरत नहीं होती, साथ में अन्य गतिविधि में भाग लेने की भी उतनी ही जरूरत होती है। पर कहीं ना कहीं ऑनलाइन शिक्षा या डिजिटल शिक्षा सिर्फ जानकारी देने पर ही केंद्रित है।

प्रतिस्पर्धा के माहौल का आभाव

इंसान एक सामाजिक प्राणी है और हम समाज को देखकर ही अपने अंदर सुधार लाते हैं। खासकर एक ऐसी अवस्था में जब कोई व्यक्ति कुछ सीख रहा है,तब वहां पर सामाजिक माहौल होना बहुत ज्यादा जरूरी है।

हम देखते हैं कि कभी-कभी कुछ विद्यार्थी पढ़ने में कमजोर होते हैं लेकिन जैसे ही उनकी दोस्ती किसी अच्छे विद्यार्थी के साथ होती है तो उनकी पढ़ाई में उन्नति साफ तौर पर दिखाई देने लगती है।

पढ़ाई हो या कार्यक्षेत्र हर जगह प्रतिस्पर्धा का होना बहुत जरूरी है। प्रतिस्पर्धा की भावना यदि हमारे अंदर होगी तभी हम उन्नति कर सकते हैं।

हालांकि बहुत अधिक प्रतिस्पर्धा नुकसानदायक भी होती है, लेकिन थोड़ी बहुत प्रतिस्पर्धा होना भी जरूरी है। इसे हम सकारात्मक रूप में ले सकते हैं।

पर ऑनलाइन शिक्षा में इसका आभाव होता है। प्रत्येक विद्यार्थी अपने घरों में बैठ कर पढ़ाई करते हैं। उन्हें नहीं पता चलता कि उनका सहपाठी उस विषय को कितनी गंभीरता से समझ रहा है।

जिसकी वजह से उनके अंदर प्रतिस्पर्धा की भावना का जन्म ही नहीं होता और वह अपने सुविधाजनक क्षेत्र में रहकर ही पढ़ाई करते रहते हैं।

डिजिटल शिक्षा वरदान है अभिशाप?

जब पहली बार बिजली का आविष्कार किया गया था तो इसका काफी दुष्प्रचार किया गया कि इसकी वजह से लोगों की मृत्यु हो जाती है और इसका उपयोग किसी को नहीं करना चाहिए।

लेकिन वर्तमान इस बात का साक्षी है कि बिजली के बिना तो कोई कार्य हो ही नहीं सकता।

पर ध्यान देने वाली बात यह है कि बिजली के जो दुष्परिणाम उस वक्त गिनाए गए थे वह आज भी हैं। आज भी बिजली का झटका लगने से किसी की मृत्यु हो सकती है।

लेकिन इंसानों ने अपनी बौद्धिक क्षमता का उपयोग कर बिजली के इस्तेमाल को सुरक्षित बनाया ताकि हम उसका उपयोग कर सकें।

यह कहने का बस इतना सा तात्पर्य है कि कोई भी चीज ना तो पूर्ण रूप से वरदान होती है ना ही पूर्ण रूप से अभिशाप।

उपसंहार

जहाँ तक बात डिजिटल शिक्षा की है तो इसके भी कुछ फायदे और नुकसान हैं, लेकिन यदि वर्तमान परिस्थिति को देख कर बात की जाए तो डिजिटल शिक्षा काफी उपयोगी है।

जैसा कि कोरोनावायरस अभी भी हमारे देश में फैला हुआ है। इस दौरान विद्यालय जाना खतरे से खाली नही है। ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा एक बेहतर विकल्प है।

विद्यार्थी अपने घर के सुरक्षित माहौल में ही शिक्षा ग्रहण कर सकता है। पर यदि भविष्य की बात करें तो अभी भी कई ऐसे अनसुलझे प्रश्न है जिनका जवाब खोजने की जरूरत है।

उसके बिना डिजिटल शिक्षा भारत में सफल नहीं हो सकती। यदि डिजिटल शिक्षा को एक वरदान बनाना है तो कुछ सुधार होना बहुत जरूरी है।