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Essay on Judicial System in India in Hindi

भारत अपने आप में एक समृद्ध और खुशहाल देश है ।भारत अपनी तरक्की करने के लिए नए-नए प्रकार के तकनीकीयों का इस्तेमाल कर रहा है। परंतु इसके साथ ही साथ भारत में लोगों के हित के लिए बहुत सारे न्याय व्यवस्था भी बनाई गई हैं। न्याय सामाजिक स्थानों का प्रथम एवं प्रधान सद्गुण है। भारत में भी न्यायिक व्यवस्था का अपना एक अलग  महत्व है। यदि हम भारतीय न्यायिक व्यवस्था पर नजर डालें तो हमें इससे जुड़ी बहुत सारी खामियां दिखाई देंगी। न्यायाधीश की कमी, न्याय व्यवस्था की खामियां, इन जैसे कई कारणों से न्यायालयों में मुकदमाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। इसीलिए कहा गया है कि कानून एक गतिशील अवधारणा है। जो समय समय पर और एक स्थान से दूसरे स्थान पर मानव के ज्ञान और सभ्यता की प्रगति के साथ समाज की जरूरतों और स्थितियों के अनुकूल होने के लिए निरंतर बदलती और विकसित होती रहती है। इसीलिए भारत की वर्तमान न्यायिक व्यवस्था को समझने के लिए इसके क्रमिक विकास और प्रगति के बारे में समझना बहुत ही जरूरी है।

भारत की न्यायिक व्यवस्था:-

भारत की न्याय व्यवस्था आम कानून व्यवस्था  पर आधारित प्रणाली है। यह प्रणाली अंग्रेजों के शासन के समय पर बनाई गई थी। इससे हम आम कानून व्यवस्था के नाम से भी जानते हैं। इस प्रकार के कानून व्यवस्था के अंतर्गत न्यायाधीश अपने फैसलों ,आदेशों, और निर्णय से कानून का विकास करते हैं ,और न्याय करते हैं।

हमारा भारत देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था। आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 में भारतीय संविधान लागू किया गया था। संविधान लागू होने से पहले हमारे भारत देश में ब्रिटिश न्यायिक समिति का शासन चलता था , परंतु 26 जनवरी 1950 के बाद भारतीय संविधान के माध्यम से ब्रिटिश न्यायिक समिति के स्थान पर नए न्यायिक संरचना का गठन हुआ था। इस संविधान के अनुसार भारत में विभिन्न प्रकार के न्यायालय स्थित है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली में स्थित है। जिसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग स्तर के उच्च न्यायालय स्थित है। उच्च न्यायालय के नीचे जिला न्यायालय है। और जिला न्यायालय के नीचे न्यायालय होता है। जीने हम निचली अदालत भी कहते हैं।

भारत के संविधान में राज्य के शक्ति को तीन भागों में बांटा गया है। कार्यपालिका, विधान पालिका ,तथा न्यायपालिका। कार्यपालिका के अंतर्गत विधियों का कार्य विवरण करना होता है। विधान पालिका के अंतर्गत विधि और कानून का निर्माण करना होता है। और न्यायपालिका का काम विवादों का निपटारा करने के साथ-साथ लोगों को न्याय देना भी होता है।

भारतीय न्यायपालिका और इसके कार्य:-

भारत में न्यायपालिका को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा गया है। सर्वोच्च न्यायपालिका, राज्य न्यायपालिका, अधीनस्थ न्यायपालिका। देश के लोकतंत्र की रक्षा करने के लिए इन न्यायपालिका का स्थापना किया गया है इसके बारे में विस्तार से जानते हैं:-

1. सर्वोच्च न्यायालय( supreme court of India  ):-

भारत में सर्वोच्च न्यायपालिका दिल्ली में स्थित है। दिल्ली में स्थित सर्वोच्च न्यायपालिका को शीर्ष न्यायपालिका भी कहा जाता है। भारत में सर्वोच्च न्यायपालिका की स्थापना 28 जनवरी सन 1950 में हुई थी। सुप्रीम कोर्ट के अंतर्गत तीन न्यायाधीश होते हैं जिनका मुखिया ‘प्रधान न्यायाधीश’ होता है। सुप्रीम कोर्ट के अंतर्गत न्यायाधीश 65 साल की उम्र तक सेवाएं प्रदान कर सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के पास देश के 25 उच्च न्यायालय के विवादों को सुलझाने का अधिकार है। उच्च न्यायालय भारत के संविधान की रक्षा भी करता है तथा कानून के उल्लंघन करने वालों को दंड देने का भी अधिकार रखता है।

2. उच्च न्यायालय( High court of India ):-

भारत में उच्च न्यायालय की स्थापना 1862 में की गई थी। भारत में उच्च न्यायालय की स्थापना राज्य स्तर पर की गई थी। भारत में कुल 24 उच्च न्यायालय स्थित है ।जिनमें से भारत का सबसे पुराना उच्च न्यायालय कोलकाता में स्थित है। सभी उच्च न्यायालय  सिविल और अपराधिक निचली अदालतों और ट्रिब्यूनल के अंतर्गत कार्य करते हैं। सभी उच्च न्यायालय ,सर्वोच्च न्यायालय के नीचे आते हैं, यानी कि भारत में जितने भी उच्च न्यायालय हैं सब सर्वोच्च न्यायालय के अंतर्गत कार्य करते हैं। और किसी भी प्रकार के विवाद का निवारण करने के लिए मुकदमा सर्वोच्च न्यायालय के पास जाता है।

जिला और अधीनस्थ न्यायालय ( District and session court of India ):-

जिला और अधीनस्थ न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के नीचे आते हैं। जिला और अधीनस्थ न्यायालय की स्थापना जिला स्तर पर ही की गई है। जिला के अंतर्गत होने वाले किसी भी प्रकार के विवाद ,लड़ाई ,झगड़ा ,और भी कई प्रकार के अन्य मामलों का निपटारा जिला और अधीनस्थ न्यायालय के अंतर्गत किया जाता है। जिला अदालत का दर्जा अधीनस्थ अदालत के ऊपर होता है, यानी कि अधीनस्थ अदालत ,जिला अदालत के अंतर्गत कार्य करता है। और सभी जिला अदालत और अधीनस्थ अदालत उच्च न्यायालय के अंतर्गत कार्य करते हैं।

भारत के न्यायिक व्यवस्था का उद्देश्य:-

भारत के न्यायिक व्यवस्था का उद्देश्य लोगों को इससे जुड़ी कुछ जानकारी के बारे में बताना है। इस पाठ को पढ़ने के बाद आप न्यायिक व्यवस्था से जुड़ी बहुत सारी बातों को जान पाएंगे ।तो आइए हम न्यायिक व्यवस्था से जुड़ी उस जानकारी के बारे में जानते हैं:-

1. भारत में न्यायिक व्यवस्था के उद्गम ,विकास तथा प्रगति के इतिहास को जान पाएंगे।

2. भारत से जुड़ी न्यायपालिका के तंत्र के बारे जान पाएंगे।

3. उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकारी को स्पष्ट कर पाएंगे।

4. भारत में न्यायिक व्यवस्था को पदानुक्रम पहचान सकेंगे।

5. न्यायालयों की कार्यप्रणाली को समझ पाएंगे।

6. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्र अधिकारी को व्याख्या कर पाएंगे।

7. भारत की वर्तमान न्यायिक व्यवस्था की कमियों का आकलन कर सकेंगे।

8. भारत की नई न्यायिक समाधानओं को जान सकेंगे।

निष्कर्ष :-

आज हमने आपको अपने इस आर्टिकल के माध्यम से भारत की न्याय व्यवस्था के बारे में समझाने का प्रयास किया है। आशा है की आप को भारत की न्याय व्यवस्था से जुड़े संविधान के बारे में हमारे इस आर्टिकल के माध्यम से काफी जानकारी प्राप्त हुई होगी। हम आपको आगे  भी अपने आर्टिकल के माध्यम से नए नए जानकारी प्राप्त करने की मदद करते रहेंगे।

FAQ ( विषय के संबंध में प्रश्न):-

1. प्रश्न:- भारत की न्यायिक व्यवस्था किस पर आधारित है?

उत्तर:- भारत की न्यायिक व्यवस्था आम कानून व्यवस्था पर आधारित प्रणाली है।

2. प्रश्न:- भारत में संविधान लागू होने से पहले किसका शासन चलता था?

उत्तर:- भारत में संविधान लागू होने से पहले ब्रिटिश न्यायिक समिति का शासन चलता था।

3. प्रश्न:- भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति किसके द्वारा की जाती है?

उत्तर:- भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है।

4. प्रश्न:- भारत के न्यायपालिका को कितने भागों में बांटा गया है? और वह कौन-कौन से हैं?

उत्तर:- भारत के न्यायपालिका को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा गया है।

1. सर्वोच्च न्यायालय

2. उच्च न्यायालय

3. जिला और अधीनस्थ न्यायालय