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Essay on Rani Lakshmi Bai in Hindi

हमारे देश भारत में ऐसे बहुत सारे महावीर और महापुरुष हुए हैं जिन्होंने देश को आजाद करवाने के लिए अपनी जान का बलिदान दे दिया। देश के लिए बलिदान होने वाले हर एक व्यक्ति के बारे में हर किसी को पता है परंतु कई बार हमें उन महा सेनानियों के बारे में नहीं बताया जाता है जिन्होंने देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दिया। देश के सबसे पहले शहीदों में से ऐसे बहुत सारे नाम आपको सुनाई देंगे जो हमारे देश को अंग्रेजों (Essay on Rani Lakshmi Bai in Hindi) से आजाद कराने में अपना सहयोग देते हैं परंतु इन्हीं नामों में से एक नाम है रानी लक्ष्मीबाई का। यह एक ऐसी वीरांगना है जिन्होंने अकेले ही वीरों की भांति अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त किया था। रानी लक्ष्मीबाई एक लौती ऐसी मराठी सेनानी थी जिन्होंने कम आयु में ही अंग्रेजों का सामना किया और उन्हें हराने की बहुत सारी कोशिश की। अंतिम सांस तक लड़ती रही और अपने जान की बाजी लगा दी।

रानी लक्ष्मीबाई का जन्म:-

यह तो हम सभी जानते हैं कि हमारे देश के वीरों ने भारत देश के लिए हंसते-हंसते प्राण न्योछावर कर दिए। भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई आज कल से नहीं बल्कि 1857 से चली आ रही थी। रानी लक्ष्मीबाई का असली नाम मनु बाई था जोकि पेशवा राव की मुंह बोली बहन थी। बचपन में ही वे उनके द्वारा अपनाई गई और उनके साथ ही खेल कूद कर बड़ी हुई। मनु बाई का जन्म 13 नवंबर सन 1835 में हुआ था। इनके जन्म स्थान के रूप में काशी को देखा जाता है इनके पिता का नाम मोरोपंत था तथा माता का नाम भागीरथी भाई था। यह सब ही महाराष्ट्र (Essay on Rani Lakshmi Bai in Hindi) के निवासी हुआ करते थे और लक्ष्मीबाई का पालन पोषण महाराष्ट्र के ही एक छोटे से गांव बिठूर में हुआ था। 5 साल के होते होते मनु बाई की माता का देहांत हो गया, जिसके बाद वह बचपन से ही पुरुषों के साथ रहने लगी और उनके साथ ही बड़ी होने लगी। बचपन से ही पुरुषों के साथ रहते रहते उन्होंने पुरुषों के बहुत सारे गुण और कलाओं को अपनाया।

पुरुषों के साथ रहते रहते ही लक्ष्मीबाई बड़ी होने लगी और उन्होंने तलवारबाजी और भाला तथा तीर निशाने बाजी में अपनी रुचि को प्रसारित किया। सन 1842 में उनका विवाह झांसी के सबसे अंतिम पेशवा राजा गंगाधर राव के साथ करा दिया गया। बचपन में मिले नाम मनु भाई तथा छबीली से बदलकर इनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। विवाह के 9 वर्ष बाद लक्ष्मीबाई (Essay on Rani Lakshmi Bai in Hindi) ने एक पुत्र को जन्म दिया परंतु जन्म के 3 महीने बाद ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। पुत्र के बिछड़ जाने से लक्ष्मीबाई के पति गंगाधर राव की हालत बिगड़ने लगी और वह बीमार रहने लगे। जिस कारण लक्ष्मीबाई ने फिर दामोदर राव को गोद लेने का संकल्प लिया और उन्हें गोद लिया। वर्ष 1853 में गंगाधर राव मृत्यु को प्राप्त हुए। उनके मृत्यु से झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पूरी तरीके से टूट चुकी थी। अपने आप को संभालते हुए उन्होंने अपने राज्य को संभालने का भी प्रण लिया। जब लोगों को गंगाधर की मृत्यु की खबर मिली तो अंग्रेजों ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को अनाथ और अकेले समझ के उनके ऊपर हमला करने की घोषणा कर दी।

झांसी पर हमला करने से पहले अंग्रेजों ने रानी लक्ष्मीबाई को एक घोषित पत्र भेजा जिसमें उन्होंने झांसी को छोड़ने के लिए कहा था। परंतु रानी लक्ष्मीबाई को झांसी छोड़ना कभी भी स्वीकार नहीं था। उन्होंने तत्पर होकर  उनके पत्र का उत्तर साफ शब्दों में दे दिया और झांसी छोड़ने से इनकार कर दिया। साथ ही उन्होंने कहा कि वह चाहे तो अंग्रेजों का डटकर सामना कर सकती है परंतु प्राण रहते झांसी कभी नहीं छोड़ सकती। इसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें असहाय समझ के उन पर हमले का पूरा षड्यंत्र रचा। अंग्रेजों ने उनके खिलाफ ऐसे कई सारे अलग अलग तरीके के इल्ज़ाम लोगों के सामने रखे जो उनके ऊपर बिल्कुल भी सही नहीं थे। अपने छोटे से बेटे दामोदर राव को अपने साथ लेकर के उन्होंने अंग्रेजों का सामना करना सही समझा। घोड़े पर सवार होकर दामोदर राव को पीछे बांधकर तलवार लेकर के झांसी की रानी युद्ध के मैदान में उतर पड़ी।

इसके बाद प्रत्येक दिन के लिए लक्ष्मीबाई ने अपना जीवन झांसी को बचाने के संघर्ष और युद्ध में बिता दिया। उन्होंने अलग रहकर भी गुप्त रूप से अपनी शक्ति को बढ़ाने का पूरा प्रयत्न किया और अंग्रेजो के खिलाफ उसे अपना साहस बनाया। झांसी की रानी को साधारण  समझ कर जब उनके मुख्यमंत्री ने उन पर हमला करने का पूरा प्रयत्न किया तो झांसी की रानी ने उनके ऊपर अपनी तैयारी (युद्घ के लिए तैयार किए गए सभी बाल) के बल को छोड़ दिया। अंग्रेजों और रानी लक्ष्मीबाई में घमासान युद्ध हुआ (Essay on Rani Lakshmi Bai in Hindi) जिसके बाद अंग्रेजों को विवश होकर वहां से भागना पड़ गया। झांसी से निकलकर रानी लक्ष्मीबाई कपिल नामक क्षेत्र में पहुंची। जहां उन्होंने अंग्रेजों से डटकर लड़ाई की और युद्ध के दौरान घायल होकर वीरगति को प्राप्त हो गई। मृत्यु के बाद भी उन्होंने अपनी वीरता का प्रमाण पूरे झांसी को दिया और अपने बल को अंग्रेजों के सामने कम नहीं होने दिया।

उपसंहार:-

यह तो सही है कि झांसी की रानी बहुत ही ज्यादा बड़ी साहसी महिला थी परंतु उनके द्वारा किए गए बलिदान को लोग छोटी मोटी क्रिया समझते हैं। झांसी की रानी आज भी हर व्यक्ति के अंदर मौजूद है परंतु उन्हें उस शक्ति को पहचानना आवश्यक है। झांसी की रानी एक ऐसी महिला थी जिन्होंने अंग्रेजों को यह सीख दी कि अपना क्षेत्र और अपना देश अपना ही होता है इस पर हम किसी का जुल्म नहीं सह सकते। इसीलिए झांसी की रानी के जैसा बनना और उनके जैसा हाल दिखाना आज के समय में भी बहुत ज्यादा आवश्यक है।

FAQ:-

1. झांसी की रानी का जन्म कब हुआ?

उत्तर:- झासी की रानी का जन्म 13 नवंबर सन 1835 में हुआ था।

2. कौन से वर्ष में झांसी का रानी का विवाह हुआ था?

उत्तर:- लक्ष्मी बाई का विवाह सन 1842 में हुआ था।

3. गंगाधर राव की मृत्यु कैसे हो गई?

उत्तर:- एकलौते बेटे की मृत्यु के बाद गंगाधर राव बीमार रहने लग गए और बीमार रहते हुए ही उन्होंने मृत्यु को प्राप्त कर लिया।

4. झासि को आजादी दिलाने के बढ़ लक्ष्मीबाई कहा गई ?

उत्तर:- झांसी से निकलकर रानी लक्ष्मीबाई कपिल नामक क्षेत्र में पहुंची।