
Essay on the journey from Earth to another planet: हमारा ग्रह यानी पृथ्वी सौर मंडल का एक सदस्य है और हमारा सौर मंडल पूरे ब्रह्मांड का एक छोटा सा हिस्सा है और यह ब्रह्मांड पृथ्वी से दिखने वाली आकाशगंगा का एक हिस्सा है।
मनुष्य अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए पृथ्वी से दूसरे ग्रह की यात्रा पर निकला है। जिसमें दूसरे ग्रहों की यात्रा करना कहा जा सकता है। कुल 5 देश है जो दूसरे ग्रहों की खोज पर अंतरिक्ष का भ्रमण कर रहे हैं। इसमें अमेरिका, रूस, चीन, इज़रायल और भारत भी शामिल है। भारत ने सबसे पहले 2008 में चंद्र यान-1 भेजकर अपना नाम अंतरिक्ष की खोज पर अपना नाम दाखिल करवाया था। फिर 2014 में मंगल ग्रह की कक्षा पर मंगल यान भेजकर एक इतिहास रच दिया था। अब भारत मनुष्य को 2022 में गगन यान के माध्यम से मनुष्य को अंतरिक्ष में भेजने पर अपनी पहल बढ़ा रहा है।
जनवरी महीने में चीन ने ‘चांग-ए 4′ नाम का एक रोबोट चंद्रमा की सतह पर उतारा है जिसे पृथ्वी से नहीं देखा जा सकता। चीन ने यह सफलता प्राप्त करके पूरे विश्व में अकेला अपना नाम दाखिल करवा लिया है। असल में दूसरे ग्रहों पर अंतरिक्ष यात्रा का उद्देश्य मनुष्य के संसाधनों को बढ़ाना है। जिससे मनुष्य अपने नए अस्तित्व की खोज कर सकें और अपनी सभ्यता का विकास कर सकें।
ग्रह किसे कहते हैं ? (What is a planet ?)
सूर्य या किसी और तारे के चारों ओर परिक्रमा करने वाले खगोलीय पिंडों को ग्रह कहते हैं। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के मुताबिक सौर्य मंडल में कुल 8 ग्रह हैं, जिनमें सबसे पहले आता है – बुद्ध फिर शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून। इसके अलावा भी तीन और छोटे छोटे ग्रह है – सीरीस, प्लूटो और ऐरिस जिन्हें बौने ग्रह के नाम से भी जाना जाता है।
सौर्य मंडल क्या है ? (What is solar system ?)
आज से करीब 5 बिलियन वर्ष पहले हमारे सौर्य मंडल की उत्पत्ति हुई थी, जब एक नए तारे का जन्म हुआ था। जिसे सूर्य या सूरज के नाम से जाना जाता है। हमारा सौर्य मंडल पूरे ब्रह्मांड में सबसे भिन्न है, जिसका आकार लगभग एक तश्तरी के समान है।
पृथ्वी से दूसरे ग्रह की यात्रा :
कई साल से वैज्ञानिक दूसरे ग्रहों की जानकारियां जुटाने में लगे हुए थे और वे अपने इस खोज में सफल भी रहे।
मरीनर-4 अंतरिक्षयान (Mariner-4 spacecraft)
पृथ्वी से दूसरे ग्रह की यात्रा करने वाला सबसे पहला अंतरिक्षयान मरीनर-4 अंतरिक्षयान था। जो 14 जुलाई 1965 में मंगल ग्रह के करीब से गुजरा। नासा द्वारा यह पहला अंतरिक्ष यान था, जिसने मंगल ग्रह की 21 धुंधली और काली तस्वीरें पृथ्वी पर भेजी। मरीनर-4 अंतरिक्ष यान मंगल ग्रह से लगभग 6,118 मील की दूरी से गुजरा था। हालांकि इससे पहले भी नासा ने कई अंतरिक्ष यान जैसे मरीनर-3 मंगल ग्रह के लिए रवाना किए थे परंतु उसमें वे नाकाम रहे। मरीनर-4 ने मंगल ग्रह के बारे में जो भी जानकारियाँ दी वह वास्तव में अविश्वसनीय थी, मरीना-4 के अनुसार, मंगल ग्रह पर कोई चुंबकीय क्षेत्र नहीं है और वहां के वातावरण का दबाव भी धरती पर मौजूद वातावरणीय दबाव से बहुत कम है।
मरीनर-9 अंतरिक्षयान (Marine-9 spacecraft)
नासा द्वारा मरीनर-9 को 30 मई 1971 में लांच किया गया था। मरीनर-9 पहला अंतरिक्षयान था जो मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचा और उसका पहला कृत्रिम उपग्रह बन गया। मरीनर-9 के द्वारा मंगल ग्रह की अजीबो-गरीब बातों का खुलासा हुआ जैसे मंगल ग्रह पर अक्सर धूल भरे तूफान उठते रहते हैं। मरीनर-9 जब मंगल ग्रह की सतह पर पहुंचा तब मंगल ग्रह की सतह पर पहले से ही धूल भरे तूफान उठे हुए थे, जो करीब एक महीने बाद समाप्त हुए और उसके बाद मरीनर-9 ने मंगल ग्रह के लगभग 48000 किलोमीटर लंबी खाई की तस्वीरें भेजी और सिर्फ यही नहीं इस सूखे ग्रह पर नदियों के तलो के भी कुछ निशानों की तस्वीरें भेजी। मरीनर-9 ने ही मंगल ग्रह के दो चंद्रमाओं की बहुत करीब से तस्वीरें भेजी थी।
वाइकिंग-1 और वाईकिंग-2 अंतरिक्ष यान (Viking-1 and Viking-2 spacecraft )
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ ने सर्वप्रथम 20 अगस्त 1975 को पृथ्वी से वाइकिंग-1 नामक एक अंतरिक्ष यान लांच किया। जो 19 जून 1976 को सही सलामत मंगल ग्रह की सतह पर पहुंच गया और लंबे समय तक काम करता रहा। वाइकिंग-1 का कलैंडर भाग इसके आर्बिटर से अलग होते हुए मंगल ग्रह की सतह पर उतारा गया जहां से उसने मंगल ग्रह की धूसर लाल रंग की सतह की लगभग 4500 तस्वीरें ली।
वाइकिंग-1 अंतरिक्ष यान की सफलता के ठीक 3 महीने बाद सितंबर 1976 को नासा ने वाइकिंग-2 को लांच किया वाइकिंग-2 पर लगे कैमरों की सहायता से मंगल ग्रह के सतहों की लगभग 1400 से अधिक तस्वीरें ली गई तथा दोनों आर्बिटर की सहायता से कुल 59000 तस्वीरें ली गई। हालांकि देखा जाए तो मंगल ग्रह पर जीवन के कोई निशान तो प्राप्त नहीं हुए है परंतु वहां के सतहों पर वे सभी तत्व मिले है जो धरती पर जीवन के लिए आवश्यक है।
मंगलयान अंतरिक्षयान (Mangalyaan spacecraft)
इसरो ने 24 सितंबर 2014 को भारत द्वारा भेजा गया मंगलयान भारत का पहला अंतरिक्षयान था। भारत के इसरो ने मंगलयान अभियान पर लगभग ₹450 करोड़ खर्च किए। जो अन्य देशों के अभियान की तुलना में सबसे सस्ता था जहाँ मंगल ग्रह से पृथ्वी पर जानकारियां पहुंचने में लगभग 12 मिनट का समय लग रहा था।
मार्स ग्लोबल सर्वेयर :
नासा की जेट प्रोप्ल्शन लेबोरेटरी द्वारा विकसित एक अमेरिकी रोबोटिक अंतरिक्ष यान मार्स ग्लोबल सर्वेयर था, जो नवंबर 1996 में मंगल ग्रह के लिए रवाना किया गया। मंगल ग्रह की सतह पर सबसे अधिक समय तक काम करने वाला अंतरिक्ष यान जिसने वायुमंडल के नीचे की सतह तक पूरे ग्रह की जांच करने वाला मार्स ग्लोबल सर्वेयर अंतरिक्ष यान था। इस अंतरिक्ष यान की सहायता से बहुत आवश्यक जानकारियां पृथ्वी तक पहुंच पाई थी जैसे मंगल ग्रह पर अभी पानी बहता है और पानी से जुड़े खनिजों की मौजूदगी का भी पता लगाया गया था।
ओडीसी अंतरिक्षयान (Mars Global Surveyor)
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने अप्रैल 2001 में ओडीसी नामक अंतरिक्ष यान को मंगल ग्रह के लिए रवाना किया। इस अंतरिक्ष यान का नाम आर्थ सी क्लास के एक साहित्य में इस्तेमाल किए गए नाम पर रखा गया था। यह 48.2 करोड़ किलोमीटर यानी 6 महीने का लंबा सफर तय करने के बाद मंगल ग्रह की सतह पर पहुंचा और वहां से उसने कई तस्वीरें पृथ्वी तक पहुँचाई तथा भविष्य में मंगल पर होने वाले मानव अभियान की संभावित समस्याओं का पता लगाने के लिए ओडिसी ने मंगल ग्रह पर रेडिएशन के बारे में कई जानकारियां प्रदान की।
पृथ्वी से मंगल ग्रह की दूरी (Distance from earth to mars)
अंतरिक्ष में ग्रहों की यात्रा के मुख्य दौर पर सभी मंगलयान की ओर विशेष रूप से अपनी पहल बढ़ा रहे हैं। पृथ्वी से मंगल ग्रह की दूरी लगभग 16 करोड़ किलोमीटर है और इसी वजह से अंतरिक्ष यान के बारे में रेडियो सिग्नल से मिलने वाली जानकारियां पृथ्वी तक पहुंचने में लगभग 8 मिनट से ज्यादा का समय लग जाता है। भारत के 2014 में मंगल यान भेजने पर वह मंगल ग्रह के समक्ष उसकी कक्षा में घूम रहा है। इसी को देखते हुए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी दावा किया कि वह 2030 तक मंगल ग्रह पर अपना अंतरिक्ष यान भेजेगा। इसके साथ यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ‘ईएसए’ ने 2050 के दशक तक अपना यान भेजने की घोषणा की है। भारत अब 2022 तक दूसरा मंगलयान भेजने की तैयारी में है।
अंतरिक्ष यात्रा जितना अधिक रोमांचकारी है उतना ही यह बाधा उत्पन्न करने वाला कार्य है। लेकिन इसकी सफलता को प्राप्त करने के लिए दुनिया के सभी बड़े देश अग्रसर हैं। मंगलयान की यात्रा के लिए कुछ विशेष ध्यान रखने योग्य बातें हैं। अतः इन जरूरी बातों को ध्यान न रखने पर कई सारी बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं :-
सही समय का पता होना (Time Management)
मंगल ग्रह की दिशा में कोई आन तभी जा सकता है जब वह सूर्य की ओर घूमते हुए पृथ्वी के नजदीक आ जाए। यह 26 महीनों में एक बार पृथ्वी के नजदीक आता है। मंगल ग्रह पर 687 दिन का 1 वर्ष होता है जो की पृथ्वी के एक वर्ष का दुगना समय है।
दूरी का पता होना (Distance Management)
सिद्धांतों के अनुसार मंगल ग्रह से पृथ्वी की दूरी 5 करोड़ 45 लाख किलोमीटर होना चाहिए। लेकिन अब तक के आंकड़ों में ऐसा देखने को नहीं मिला है। यह सबसे निकटतम 5 करोड़ 60 लाख किलोमीटर की दूरी पर ही दर्ज किया गया है।
वातावरण का प्रभाव (Environment Effect)
मंगल ग्रह पर 96% कार्बन डाइऑक्साइड है जो मनुष्य के रहने योग्य बिल्कुल भी नहीं है पता मनुष्य को कोई ऐसा उपकरण बनाना होगा जो कार्बन डाइऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदल दे। हालांकि इतनी अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड होने के कारण भविष्य में मंगल ग्रह पर ऑक्सीजन की अपार संभावना होने की उम्मीद जताई जा है। जिससे एक नई मानव सभ्यता का विकास हो सकता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
मनुष्य के लगातार आधुनिकता की ओर बढ़ने के कारण मानव की इच्छा तीव्र होती जा रही है जिसके कारण वह नई नई खोजों और आविष्कारों को बड़ी तत्परता से सफल करना चाहता है। ऐसे ही अंतरिक्ष में ग्रहों की खोज मानव सभ्यता की एक नई पहचान के रूप में उभर कर आया है। जिसमें मनुष्य ने काफी हद तक सफलता प्राप्त की है।