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Essay on Vijayadashami | Vijayadashami Par Nibandh In Hindi | विजयदशमी पर निबंध इन हिंदी

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Essay on Vijayadashami | Vijayadashami Par Nibandh In Hindi | विजयदशमी पर निबंध इन हिंदी

Essay on Vijayadashami In Hindi : विजयदशमी का त्यौहार भारत में हिंदू धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। यह त्योहार हर साल नवरात्रि के 9 दिन बीतने के पश्चात आता है। विजयदशमी का यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन भगवान श्रीराम ने रावण को मार कर विजय प्राप्त की थी। इसीलिए इस दिन का नाम विजय दशमी के नाम से पड़ गया। आज हम इस आर्टिकल में विजयदशमी पर संक्षिप्त में लेख प्रस्तुत करेंगे।

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विजयदशमी पर निबंध (Vijayadashami Par Nibandh In Hindi) –  Essay on Vijayadashami (1000 Words)

प्रस्तावना

विजयदशमी को हिंदुओं का प्रमुख त्योहार माना जाता है। यह त्यौहार हिंदू धर्म का एक मुख्य और पवित्र त्यौहार है। लोग इस दिन से हर नए कार्य की शुरुआत करते हैं। यह त्योहार आश्विन महीने की शुक्ल पक्ष की दशमी को आता है। इस दिन का नाम विजय दशमी इसलिए पड़ा, क्योंकि इस दिन भगवान श्रीराम ने रावण को मारकर विजय प्राप्त की थी। असत्य पर सत्य की जीत का यह त्यौहार कई मुख्य संदेश आज भी देता है। इस त्यौहार को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। लोग इस दिन रावण का पुतला जलाकर पटाखे भी फोड़ते हैं। रावण के साथ-साथ रावण के भाई कुंभकर्ण और उसके पुत्र मेघनाथ के पुतले इस विजयदशमी के दिन जलाए जाते हैं।

इस विजय दशमी का माहौल 9 दिन पहले ही बन जाता है। जब नवरात्रि की शुरुआत होती है। तब से लोग दशहरे और विजयदशमी को मनाने की तैयारियां शुरू कर देते हैं। विजयदशमी के दिन अलग-अलग मोहल्लों में लोग इकट्ठा होकर पुतले जलाते हैं। पटाखे फोड़ते हैं और खूब आनंद उठाते हैं।

विजयदशमी त्यौहार मनाने की वजह

विजयदशमी का यह त्योहार आज से हजारों वर्ष पहले से चला आ रहा हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। ऐसा माना जाता है, कि आज से कई हजार वर्ष पहले भगवान राम अयोध्या नरेश महाराजा दशरथ के पुत्र हुआ करते थे। भगवान राम की शादी देवी सीता से हो जाती है। शादी होने की कुछ महीनों बाद भगवान राम को अयोध्या का राज पाठ सौंपा जाना है।

लेकिन माता केकई के कहने पर महाराजा दशरथ भगवान श्रीराम को राजपाट देने की बजाय 14 वर्ष के वनवास में भेज देते हैं। वनवास मैं भगवान श्री राम के साथ उनके छोटे भाई लक्ष्मण और देवी सीता भी जाती हैं। एक दिन रावण भगवान राम की कुटिया से देवी सीता का हरण करके उसे लंका ले जाता है। लंका नरेश रावण देवी सीता से शादी करने के लिए देवी सीता का अपहरण करता है। लेकिन लंका नरेश को एक महा ऋषि का श्राप लगा हुआ होता है,कि वह किसी भी महिला को उसकी इच्छा के बिना जबरदस्ती नहीं छू सकता है। इसी कारण से जब तक देवी सीता नहीं मान जाती तब तक रावण सीता को अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रखता है। इधर भगवान श्रीराम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण सीता माता को ढूंढते-ढूंढते लंका तक पहुंचते हैं।

जब तक भगवान राम लंका पहुंचे उससे पहले सुग्रीव और हनुमान जी भी भगवान राम के साथ लंका जाते हैं। जब भगवान श्री राम की सेना लंका पहुंच जाती है। तो रावण को युद्ध के लिए ललकारा जाता है और रावण से युद्ध शुरू करते हैं। कई दिनों तक लगातार युद्ध चलता रहता है। उसके पश्चात भगवान इस विजयदशमी के दिन रावण का वध करके भगवान श्रीराम ने सीता को अपने साथ अयोध्या लेकर आते हैं। आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन रावण का वध भगवान राम के हाथों से होता है।

इसीलिए इस दिन को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है क्योंकि इस दिन भगवान श्री राम की विजय हुई और पापी रावण का अंत हुआ। दीपावली का अवसर भी इस कहानी से ही जुड़ा हुआ है। रावण का वध करने के पश्चात भगवान श्रीराम विजयदशमी के दिन सीता माता को अपने साथ लेकर अयोध्या के लिए रवाना होते हैं और दीपावली के दिन भगवान श्रीराम का 14 वर्ष का वनवास पूरा होता है और पुनः भगवान श्री राम अयोध्या का राज्य शासन संभालते हैं। इसी उपलक्ष में दीपावली के पर्व को मनाया जाता है।

विजयदशमी का त्यौहार

यह त्योहार अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग रूप से मनाया जाता है। जैसे उत्तर भारत के विभिन्न जगहों पर इस त्यौहार के दिन रामलीला की पूरी टीम बनाकर तैयार की जाती है और लंका नरेश अहंकारी रावण का वध करके उसका पुतला जलाते हैं। जब रावण का वध हो जाता है। तो उसकी खुशी में लोग पटाखे फोड़कर जश्न मनाते हैं।

भारत के हिमाचल प्रदेश की कछु घाटी में भी विजय दशमी बहुत ही लोकप्रिय त्योहार है। हिमाचल प्रदेश विजयदशमी का त्योहार इतने धूमधाम से मनाया जाता है, कि यहां देखने के लिए देश विदेशों से लोग आते हैं। यहां के विजयदशमी के पर्व में श्रद्‌धा, भक्ति और उल्लास तीनों देखने को मिलता है।

विजयदशमी का यह त्यौहार हर वर्ष बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। भारत में विजयदशमी का यह त्यौहार जिसे राष्ट्रीय त्योहार का दर्जा दिया गया है। विजयदशमी के इस अवसर पर सभी सरकारी दफ्तरों में छुट्टियां रहती है। विजयदशमी का यह दिन सबसे शुभ दिन माना जाता है। लोग अपने हर प्रकार के नए कार्य इसी दिन से शुरू करते हैं। जैसे नई गाड़ी लेना,नया मकान लेना, नया धंधा खोलना इत्यादि।

हिंदू धर्म में विजयदशमी का महत्व

हिंदू धर्म के लोग इस विजयदशमी के अवसर को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। आश्विन शुक्ल दशमी के दिन आने वाला यह त्योहार पूरे भारतवर्ष में एक उत्साह की उमगं लहराता है। यह त्योहार भारत की संसद और वीरता का प्रतीक है। यह त्यौहार आज भी लोगों में शौर्य का प्रतीक बना हुआ है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट करने के लिए इस त्यौहार को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

इतना ही नहीं हिंदू धर्म के लोग इस दिन अपने अस्त्र व शास्त्रों की पूजा करते हैं। हिंदू धर्म के लोग इस दिन को सबसे पवित्र और खास दिन मानते हैं। क्योंकि इस दिन भगवान श्रीराम ने रावण जैसे पापी का नाश किया था। इसी दिन हिंदुओं के घरों में शस्त्र पूजा का एक मुख्य आयोजन रखा जाता है। खास तौर से राजपूत समाज आज भी शस्त्र पूजा में बहुत रुचि दिखाते हैं। विजयदशमी का यह दिन 10 प्रकार के पाप को छोड़ने की सलाह देता है उदाहरण गलत काम काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी इत्यादि।

कई लोग इस त्यौहार को खेती का प्रतीक भी मानते हैं। कई लोगों का कहना है, कि किसान जून से जुलाई के महीने में फसल होता है और लगभग इसी विजयदशमी के आस पास अनाज रूपी धन अपने घर में ले जाता है। इसी उपलक्ष में लोग विजयदशमी मनाते हैं। लोगों का कहना है, कि विजय दशमी तक बरसात का सीजन चला जाता है। नदियों और नालों की बाढ़ रुक जाती है।

विजयदशमी पर निबंध (Vijayadashami Par Nibandh In Hindi) –  Essay on Vijayadashami (1500 Words)

विजयादशमी (दशहरा) हिन्दुओं मे मनाए जाने वाला एक सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण त्योहारों में से है। दशहरा एक राष्ट्रीय त्यौहार है। दशहरा के दिन को पूरे भारतवर्ष में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

भारत में विजयादशमी (दशहरा) आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष में जो की अक्सर सितम्बर या अक्टूबर में ही मनाया जाता है । दशहरा का पर्व कुल मिलाकर 10 दिनों का होता है। इसमें नवरात्रि में 9 दिनों की पूजा के बाद दसवे दिन को विजयादशमी (दशहरा) के रूप में मनाया जाता है | विजयादशमी को कई नामों से जाना जाता है यह नाम दशहरा ,बिजोया या आयुध आदि है।

उत्तर भारत तथा उत्तर पूर्व भारत के कई जगहों में भगवान् राम की विजय के ख़ुशी में रामलीला के नाटकीय रूप का आयोजन किया जाता है जिसमें भगवान राम का अहंकारी असुर रावण पर विजय हासिल करने के पश्चात अपनी पत्नी सीता के साथ वापस अयोध्या लौट कर आने तक के सफ़र को दर्शाता है।

पश्चिम बंगाल,झारखंड जैसे कई जगहों पर माता दुर्गा का शेर पर सवार हो करके महिषासुर का वध करते हुए मूर्तियो आदि में दर्शाया जाता है साथ ही उनकी पूजा अर्चना भी की जाती है ।

दशहरा के दिन लोग अस्त्र-शस्त्र पूजन तथा नया कार्य आदि प्रारम्भ करते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो भी कार्य शुरू किया जाता है उस पर विजय अवश्य मिलती है।

जगह जगह पर मेले, नाटक, रंगमंचीय तथा कार्यक्रमों आदि का अयोजन किया जाता है। इस दशहरा वाले दिन भोजन के अनेक प्रकार के व्यंजनों का निर्माण घरों में किया जाता है साथ ही इसी प्रकार के स्वादिष्ट भोजन तथा मिठाइयां आदि भी हमें मेलों आदि में भी देखने को मिलते हैं।

विजयादशमी अर्थात दशहरा का पर्व कब मनाया जाता है?

विजयादशमी (दशहरा) आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन धूमधाम से मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार दशहरे के त्यौहार सितम्बर या अक्टूबर महीने में ही पड़ता है।

विजयादशमी (दशहरा) हिन्दुओं में मनाया जाने वाला का एक सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण त्यौहार है। दशहरे को एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है। दशहरे के त्यौहार के समय लगभग सभी जगहों पर अवकाश होता है दशहरे के त्यौहार में स्कूल कॉलेज कुछ सरकारी संस्थान आदि सभी पर अवकाश घोषित किया जाता है।

विजयादशमी (दशहरा) पर्व की से संबंधित कहानियां

विजयदशमी को कई प्रकार के लोक कथाएं पौराणिक कथाएं तथा धर्म ग्रंथ आदि को आधार मानकर मनाया जाता है आइए कुछ महत्वपूर्ण तथा रोमांचकारी कथाओं के बारे में जानने का प्रयास करें।

राम की लंका पर विजय की कहानी

यह अन्य सभी कहानियों में अत्यंत लोकप्रिय तथा मान्यता प्राप्त कहानियों में से एक कहानी है इसका वर्णन हमें पौराणिक कथाओं तथा अनेक प्रकार के धर्म ग्रंथों में भी देखने को मिलता है।
इस कथा के अनुसार, अयोध्या के राजा जिनका नाम दशरथ था। राजा दशरथ की 3 पत्नियां थीं। सबसे बड़ी पत्नी का नाम कौशल्या, दूसरी पत्नी का नाम कैकेइ तथा तीसरी पत्नी का नाम सुमित्रा था। इन तीनों रानियों से राजा दशरथ को 4 संतानो की प्राप्ति हुई थी। कौशल्या से राजकुमार राम, कैकई से राजकुमार भरत ,और सुमित्रा से 2 संतान लक्ष्मण और शत्रुघ्न की प्राप्ति महाराज को हुई थी। इन चारों भाइयों का आपस में बहुत प्रेम , आदर तथा सम्मान था।

एक दिन की बात है जब राजा दशरथ ने कहा की मैं कल राजसभा में राजकुमार राम को अयोध्या नगरी का राजा घोषित करूँगा। तब उनकी दूसरी पत्नी कैकई के मन में ईर्ष्या की भावना जागी। क्योंकि कैकेई राम की जगह भारत को अयोध्या का राजा बनते हुए देखना चाहती थी।

इसीलिए देवी कैकेई ने महाराज दशरथ से राम को 14 वर्ष का वनवास भेजने के लिए वरदान मांगाम दिए गए वचनों के अनुसार महाराज दशरथ अपने वचनों से विमुख ना हो पाए तथा राम को वनवास जाने की आज्ञा दी। तब राम के साथ उनकी पत्नी सीता और उनके छोटे भाई लक्ष्मण भी वनवास जाने का इच्छा प्रकाट की।

राम के कई बार मना करने के बाद भी देवी सीता और लक्ष्मण उनके साथ वनवास के लिए निकल पड़े। उसी वनवास काल के दौरान असुरराज रामायण में ने देवी सीता का अपहरण कर लिया|

रावण एक बहुत ज्ञानी तथा बलशाली असुरराज था जिसकी सोने की लंका भी थी। रावण के पिता विशर्वा, एक ब्राह्मण कुल से थे। जबकि उसकी माता एक राक्षस कुल की थी। इसीलिए रावण एक ब्राह्मण की तरह ज्ञानी तो था ही परंतु एक राक्षस की तरह बलवान तथा निर्दई प्राणी भी था। रावण एक बहुत ही घमंडी असुर था। साथ ही वह एक बहुत बड़ा महान शिवभक्त भी था।

भगवान् राम ने माता सीता को वापस लाने के लिए अहंकारी कसूर राज रावण के साथ युद्ध किया ,जिसमे भगवान् राम के निष्ठावान तथा परम भक्त वीर हनुमान और उनकी पूरी वानर सेना ने उनका साथ दिया। इस युद्ध में रावण का छोटे भाई विभीषण ने भी प्रभु श्री राम का साथ दिया और अंत में भगवान् राम ने रावण का वध करके उसके घमंड तथा अत्याचारी शासन व्यवस्था का सर्वनाश कर दिया। और अपनी पत्नी सीता को लंकापति रावण से मुक्त कराने में सफल रहे और सम्मान पूर्वक माता सीता को स्वीकार करते हुए अयोध्या की ओर वापसी की।

भगवान् के इसी विजय के स्वरुप विजयादशमी के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है साथ ही यह बुराई पर अच्छाई की जीत को भी दर्शाता है।

माँ दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध तथा विजय की कहानी

महिषासुर नमक एक बहुत ही बलवान और शक्तिशाली असुर हुआ करता था। उसके पास पूरी दुनिया को जीतने की शक्ति तथा सामर्थ था और वो इतना शाक्तिशाली था कि उसे कोई भी पराजित नहीं सकता था।

उसको कई देवी देवताओं से विभिन्न प्रकार के वरदान भी प्राप्त थे जिसके कारण उसे पराजित करना किसी के बस की बात नहीं थी। उसने पाप अन्याय तथा दुराचार का एक बहुत बड़ा साम्राज्य स्थापित कर लिया था उससे सभी लोग, मनुष्य, देवी-देवता, जानवर, पशु-पक्षी आदि सभी उसे प्रताड़ित थे। स्वयं ब्रह्मा, विष्णु,और महेश्वर भी उसका वध करने में असमर्थ थे।

तब सभी देवी-देवताओं ने सोचा की अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन ये पुरे विश्व का सर्वनाश कर देगा। इसलिए इसे ऐसे करने से रोकना अत्यंत आवश्यक है। तब सभी देवी तथा देवताओ ने यह तय किया कि हम माँ दुर्गा का आवाहन करेंगे तथा माता को हमारे सारे शक्तियां और हाथियार दे देंगे तत्पश्चात उन से अनुरोध करेंगे कि वह महिषासुर का वध कर संपूर्ण जगत में न्याय पूर्ण सुनिश्चित व्यवस्था का निर्माण करें।

सभी देवी-देवता मिलकर के मां दुर्गा का आह्वान करते हैं और साथ ही अपने अस्त्र-शस्त्र से माता को युद्ध के लिए सुसज्जित करते हैं। तब माँ दुर्गा अपार शक्तियों और दस हाथों में दस प्रकार के अस्त्र तथा शास्त्रों को ग्रहण कर के रणभूमि में महिषासुर के साथ युद्ध करने के लिए प्रस्थान करती हैं।

9 रातो और 10 दिनों के संघर्ष बाद दसवें दिन आदिशक्ति माँ दुगा ने महिषासुर का वध कर दिया। और विजयी होक स्वर्गलोक वापस आ गयी। उन्होंने सभी प्राणियों और समस्त देवी-देवताओं को महिषासुर के आतंक से मुक्त कर दिया।
संपूर्ण कथा में सार के रूप में यह दर्शाया जाता है कि बुराई कितने भी ताकतवर क्यों ना हो अच्छाई के सामने वह कभी न तो टिक सकती है और ना ही जीत सकती है।

देवी माँ दुर्गा की इस विजय तथा बुराई पर अच्छाई की जीत के विजय दिवस को विजयदशमी या दशहरा के रूप में आज भी बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।

विजयादशमी अर्थात दशहरा के त्यौहार का महत्व

भगवान् राम का रावण पर विजय ,और माँ दुर्गा का महिषासुर पर विजय अर्थात बुराई पर अच्छाई की विजय पाने की ख़ुशी में विजयादशमी का दिवस मनाया जाता है।

दोनों ही रूपों तथा कथाओं में में यही दर्शाया जाता है की बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो ,आखिर में उसका अंत हो ही जाता है और अच्छाई की ही हमेशा जीत होती है। ऐसी मान्यता है। ये त्यौहार इसी जीत की ही ख़ुशी में मनाया जाता है।

हमारे भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक तथा शौर्य की उपासक के रूप में इस त्यौहार को मनाया जाता है। दशहरा का त्यौहार हमें सिखाता है कि हमें हमारे अंदर की की बुराइयों के प्रति सजगता बनाए रखना तथा उनसे लड़ने के लिए हमेशा तत्पर तैयार रहना चाहिए । साथ ही यह त्यौहार हमें यह भी सिखाता है कि हमें बाहर की बुराइयों से भी लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए। हमें बहुत हिम्मत रख कर हमेशा न्याय, अच्छाई और सत्य के लिए लड़ना चाहिए।

विजयादशमी का त्यौहार हमें हमारे अंदर की बुराई से लड़ने की प्रेरणा भी देता है बुराई जैसे काम, क्रोध , लोभ, मोह, मद्य, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा, चोरी का गुण, या पराई स्त्री पर कुदृष्टि। हमें इन सबको नियंत्रित करना होगा। तभी जा कर हम अपने बुराइयों पर विजय पा सकेंगे।

इसीलिए विजयादशमी को बुराई पर अच्छाई का प्रतीक के रूप में माना जाता है और ये हमें सभी प्रकार के दुर्गुणों के परित्याग की सद्प्रेरना तथा संबल देता है।