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भारत में प्रसाशनिक सुधार के मुद्दे में नये लोकपाल बिल की आवश्यकता : (Need for new Lokpal bill in the issue of administrative reform in India)
लोकपाल बिल क्या है? (What is Lokpal Bill?)
लोकपाल बिल नागरिकों द्वारा प्रस्तावित एक प्रकार का मसौदा होता है। लोकपाल बिल की पूरी प्रकिया एक स्वतंत्र संस्था की तरह काम करती है जो सशक्त जन लोकपाल की स्थापना का प्रावधान करती है । जनलोकपाल के पास इस बात की शक्ति होती है कि वह भ्रष्ट राजनेताओं के अतिरिक्त नौकरशाहों पर बिना किसी के अनुमति के लिए आयोग चला सकते हैं।
जन लोकपाल बिल की सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें एक वर्ष के भीतर न्याय प्रकिया पूरी हो जाती है।
लोकपाल बिल का इतिहास: (History of Lokpal Bill)
दुनिया में सबसे पहले लोकपाल बिल 1809 में स्वीडन में पारित किया गया। सबसे पहले यह विकसित देशों द्वारा अपनाया गया और अब विकासशील देशों द्वारा भी किया जा रहा है। स्वीडन समेत पूरी दुनिया में लोकपाल को ओम्बड्समैन कहा जाता है। इस तरह इसे नागरिक अधिकारों का संरक्षक कहा जाता है। लोकपाल को स्वतंत्र और सर्वोच्च माना जाता है जिसमें लोक सेवकों के विरुद्ध शिकायतों की सुनवाई होती है।इसके साथ ऊंची जांच पड़ताल के लिए सरकार से सिफारिश भी होती है।
- भारत में लोकपाल की शुरुआत 1960 में शुरू हुई थी। वहीं सबसे पहले केएम मुंशी ने संसद में लोकपाल का मुद्दा उठाया था।
- प्राथमिक सुधार आयोग 1966 की सिफारिश पर 9 मई 1968 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सरकार में लोकपाल विधेयक संसद में पेश किया गया था। तो वही उस वक्त विधेयक में पहली बार प्रधानमंत्री को भी रखा गया था।
- 1971 को पीएम मोदी को लोकपाल के दायरे से हटा लेने का फैसला लिया गया।
- 1977 और 1985 में प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के दायरे में फिर से शामिल किया गया था।
- 1989 में वीपी सिंह की सरकार ने इसमें वर्तमान और निवर्तमान को शामिल करने का फैसला लिया।
- 1996 में एचडी देव गौड़ा और फिर 1998 व 2001 में भाजपा सरकार ने भी प्रधानमंत्री पद को शामिल किया था। हालांकि उस समय नौकरशाह इस विधेयक में शामिल नहीं हुआ था।
भारत में लोकपाल बिल: ( Lokpal Bill In India)
लोकपाल बिल की मांग सबसे पहले 1960 में के.एम. मुंशी द्वारा किया गया भारत में लोकपाल बिल 18 दिसम्बर 2013 को दोनों सदनों में पारित किया गया और राष्ट्रपति ने भी तत्काल इसे मंजूरी दे दी ।
देश में समय–समय पर प्रशासनिक सुधारों की चर्चा होती रहती है एवं इस दिशा में किसी भी प्रकार की बड़ी कार्यवाही होने पर चर्चा का बाजार काफी गर्म हो जाता है। भारतीय प्रशासनिक ढाँचा प्रमुख रूप से ब्रिटिश शासन प्रणाली पर ही आधारित किया गया है।
भारतीय प्रशासन की विभिन्न जांच आयुक्त और कार्यप्रणाली गत पक्षों के अंतर्गत आने वाले मुख्य रूप से बजट प्रणाली, लेखा परीक्षा, केंद्रीय करों की प्रवृत्ति, सचिवालय प्रणाली, अखिल भारतीय सेवाएं, कार्यालय पद्धति, पुलिस प्रशासन आदि के साथ–साथ राजस्व प्रशासन आदि सम्मिलित हैं। इसके अलावा भर्ती, प्रशिक्षण, जिला प्रशासन आदि को भी स्थान दिया गया है।
प्रसाशनिक सुधार से आशय: (Administrative reform means)
प्रसाशनिक सुधार से आशय एक प्रकार का सुनिश्चित बदलाव होता है जिससे प्रसाशनिक क्षमताओं में वृद्धि होती है और निश्चित लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में आगे बढने में सहुलियत होती है। आथिर्क और सामाजिक क्षेत्रों में सुरक्षा की चाक–चौबंद के लिए समय–समय पर होती है और देश व समाज की हितों के लिए प्रसाशनिक सुधार की आवश्यकता होती है। प्रशासनिक सुधार के माध्यम से प्रशासन में कई प्रकार के सुनियोजित बदलाव किए जाते हैं जिससे प्रशासनिक क्षमताओं में काफी वृद्धि होती है। इसके अलावा इस बात की भी काफी सहूलियत होती है कि निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ा जा सके।
प्रसाशनिक सुधार की आवश्यकता: (Administrative reform required)
आजादी के बाद देश को नये कानून व्यवस्था और संपूर्ण देश को बदलने के लिए प्रसाशनिक सुधार की आवश्यकता पडी़। इसी परिपेक्ष्य में पंचवर्षीय योजना की शुरूआत की गयी। भ्रष्टाचार घूसखोरी और ख़ामियों को देखते हुए तथा आवश्यकता के अनुरूप समय–समय पर प्रसाशन को भी बदलने की आवश्यकता होती है। अतः कानूनी व्यवस्था के दोष रहित संचालन के लिए प्रसाशनिक सुधार की आवश्यकता होती है।
देश के आजाद होने के पश्चात सामाजिक और आर्थिक संरचना में कई बड़े परिवर्तन करने के लक्ष्य बनाए गए, जिसके दौरान पंचवर्षीय योजनाएं प्रारंभ हुई। इन योजनाओं के लिए प्रशासनिक ढांचे में कई प्रकार के सुधार अपेक्षित थे। लोगों की आवश्यकताएं भी बदलती रहती है जिसके कारण प्रशासन को भी उनके अनुकूल बनना पड़ता है। अतः प्रशासनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से दोषपूर्ण कार्य संचालन को ठीक करने की आवश्यकता होती है जिसके कारण प्रशासनिक सुधार अत्यंत आवश्यक हो जाता है।
प्रसाशनिक सुधार आयोग: (Administrative Reforms Commission)
प्रसाशनिक सुधार आयोग का गठन 5 जनवरी 1966 को किया गया तथा पहली रिपोर्ट 30 अक्टूबर 1966 तथा दूसरी 30 जून 1970 को लागू किया गया, जिसमें कुल 578 सुझाव थे। योजना आयोग, क्रमिक विभाग, न्यायिक सेवक न्यायघिकरण , क्षेत्रक नियामक प्रणाली और लेखापरीक्षा मण्डल मुख्य थे।
प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन: (Constitution of the first Administrative Reforms Commission)
प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में पूर्ण हुआ। इसके बाद मोरारजी देसाई केंद्रीय मंत्री परिषद में शामिल हो गए जिसके कारण के हनुमंत्या को अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उनके द्वारा 578 सुझाव दिए गए थे जिसमें प्रमुख रुप से निम्नलिखित शामिल थे –
- योजना आयोग की सदस्य संख्या 7 से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- सरकारी कर्मचारियों को हड़ताल का अधिकार ना दिया जाए और उनकी जो भी समस्याएं हैं उन्हें संयुक्त विचार विमर्श के माध्यम से सुलझाया जाए।
- लेखा परीक्षा के दृष्टिकोण को सकारात्मक एवं रचनात्मक तरीके से देखा जाए।
- प्रत्येक वित्त वर्ष की शुरुआत 1 नवंबर से की जानी चाहिए।
- जिन व्यक्तियों को प्रशासनिक और सार्वजनिक जीवन का दीर्घ अनुभव हो, केवल उन्हें ही राज्यपाल के पद पर नियुक्त किया जाए।
- जिला प्रशासन के दो भाग किए जाएं जिसमें नियामकीय तथा विकासात्मक भाग सम्मिलित हो।
- प्रधानमंत्री के अंतर्गत उनके अधीन ही कार्मिक विभाग की स्थापना की जानी चाहिए।
- लोक प्रशासकों के विरुद्ध जनता के अभियोग के विभिन्न निराकरण के लिए लोकपाल और लोकायुक्त की नियुक्ति भी अनिवार्य होनी चाहिए।
द्वितीय प्रसाशनिक आयोग का गठन: (Constitution of Second Administrative Commission)
द्वितीय प्रसाशनिक आयोग का गठन 31अगस्त 2005 में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री वीरप्पा मोदी कि अध्यक्षता में गठन किया गया। आयोग के अध्यक्ष ने जब 2009 में पद छोडा़ तब तक उसमें अपनी सिफारिशों की 15 रिपोर्ट दे चुके थे। सरकार के द्वारा इस आयोग को सभी स्तरों पर देश के हित के लिए प्रतिक्रियाशील, जवाब दें तथा आगे के प्रशासन के लिए सुझाव की जिम्मेदारी भी सौंप दी गई है। इनके अतिरिक्त आयोग द्वारा कई महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए गए हैं जो निम्नलिखित रूप से देखे जा सकते हैं
- भारत सरकार के अंतर्गत आने वाला संगठनात्मक ढांचा
- स्थानीय स्वशासन एवं पंचायती राज संस्थान
- सामाजिक पूंजी के साथ–साथ भागीदार पूर्ण तथा विश्वास सरकारी सेवा प्रदायगी
- संकट प्रबंधन अथवा आपदा प्रबंधन
- सार्वजनिक व्यवस्था
प्रसाशनिक सुधार के मुद्दे पर नये बिल की आवश्यकता: (Need for new bill on the issue of administrative reform)
- प्रसाशनिक सुधार आयोग की 40 वी रिपोर्ट के अनुसार लोकतंत्र की शक्ति जनता में निहित है तथा यह सिद्धांत और आदर्श ही लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व की धारणा की नींव रखता है।
- सिविल सेवा या सेवक अपने ज्ञान, योग्यता, अनुभव और लोक मामलों की समझ के आधार पर जन प्रतिनिधियों की सहायता से निती निर्माण और उसे क्रियान्वित करती है।
- प्रसाशनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट के अनुसार अध्यक्षीय शासन में सिविल सेवा लूट पद्धति के अधीन रहती है जिसमें सरकार अपनी पसंद के आधार पर पक्षपात पूर्ण ढंग से पदों का वितरण करती है।
- लूट प्रणाली का आशय संरक्षकत्व भाई–भतीजावाद और भष्ट्राचार को बढ़ावा देना होता है। अतः एक निष्पक्ष अभिकरण के जरिए ही इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है। इस प्रकार प्रसाशनिक सुधार की दृष्टि से नये लोकपाल बिल की आवश्यकता है।
- प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट के अनुसार सिविल सेवा शासन में एकरूपता, सांस्कृतिक रूप विविधता का एकीकरण में सहायक है। अतः लूट प्रणाली से बचने के लिए प्रशासनिक सुधार बिल की आवश्यकता है।
- प्रशासनिक सुधार आयोग का कहना है कि सरकार के मंत्रियों और सिविल सेवकों के बीच एक स्पष्ट कार्यात्मक संबंध बना रहे, ताकि सिविल सेवक मंत्रियों के प्रति जवाबदेही हो।
- प्रसाशनिक सुधार आयोग के अनुसार राजनीतिक कार्यपालिका व स्थाई नौकरशाही के मध्य दायित्वों का स्पष्ट रूप से निर्धारण हो, जो जनता के कल्याण व सुशासन की दृष्टि से आवश्यक है।
प्रशासनिक आयोग के मुख्य मानक: (Main Standards of Administrative Commission)
- सभी सरकारी नौकरियों में भर्ती अथवा नियुक्ति एक सौ परिभाषित विधि से किया जाए ।
- सभी पदों के चयन के लिए विस्तृत प्रचार और मुक्त प्रतिस्पर्धा हो।
- चयन प्रमुखता मुख्य परीक्षा के आधार पर न्यूनतम होना चाहिए और साक्षात्कार को चयन प्रक्रिया में न्यूनतम भारत मिलना चाहिए।
- नए लोकपाल बिल की आवश्यकता का सबसे बड़ा कारण सरकार, अधिकारी और जनता के बीच आपसी सामंजस को ठीक से स्थापित करना है, ना कि केवल खानापूर्ति क्योंकि अभी तक सरकार और जनता के बीच केवल खानापूर्ति की जा रही है और सरकारी दृष्टि से कर्मचारियों की नियुक्ति में भी उदासीनता दिखाई दे रही है ।
लोकपाल बिल की प्रमुख बातें: (Important features of Lokpal bill)
लोकपाल के पास सेना को छोड़कर बाकी प्रधानमंत्री से लेकर किसी भी चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी तक किसी भी जनसेवक के खिलाफ भ्रष्टाचार की सुनवाई का अधिकार है।
लोकपाल के प्रमुख अधिकार –
- तलाशी और जब्तीकरण।
- संपत्ति को स्थाई तौर पर अचल करने का अधिकार अपना प्रतिनिधि नियुक्त करने का अधिकार।
- शुरुआती जांच के दौरान उपलब्ध रिकॉर्ड को नष्ट होने से बचाने के लिए निर्देश देने का अधिकार।
- भ्रष्टाचार के आरोप वाले सरकारी कर्मचारी को एक स्थान से दूसरे स्थान भेजना या उसके निलंबन का अधिकार।
प्रशासनिक सुधार के मुद्दे पर लोकपाल बिल में सुधार से फायदा: (Benefit from reform of Lokpal bill on the issue of administrative reform)
- भ्रष्टाचारियों पर उपयुक्त कार्यवाही
- जनता को तत्काल न्याय
- सरकारी नौकरियों में सरकार द्वारा जल्द जवाब
- सिविल सेवकों और सरकार के बीच अच्छा आपसी संबंध
- सामाजिक सुधार और भ्रष्टाचार मुक्त करने में सहायक
निष्कर्ष
लोकपाल बिल की शुरुआत सर्वप्रथम स्वीडन 1809 में की जबकि है भारत में 18 दिसंबर 2013 को दोनों सदनों में पास हुआ और राष्ट्रपति ने भी मंजूरी दे दी। प्रशासनिक सुधार आयोग का मुख्य कार्य सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में चाक–चौबंद से होता है।
प्रशासनिक सुधार आयोग के अनुसार जनता लोकतंत्र का मुख्य आधार माना जाता है। प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट के अनुसार सरकारी नौकरियों में लूट पद्धति से काम हो रहा है। लोकपाल बिल के प्रमुख बातें हैं कि लोकपाल के पास सेना को छोड़कर बाकी देश के किसी भी व्यक्ति के खिलाफ सुनवाई का अधिकार है।
लोकपाल बिल में सुधार का सबसे बड़ा मुद्दा फायदा जनता को मिलना चाहिए, ताकि सरकार और जनता के बीच संबंध बना रहे और जनता को तत्काल न्याय मिल सके क्योंकि लोकपाल बिल की सबसे बड़ी बात किसी भी मुकदमे की सुनवाई अधिकतम 1 वर्ष में पूर्ण हो जानी चाहिए। प्रशासनिक सुधार के मुद्दे पर की आवश्यकता सिविल सेवकों मंत्रियों के बीच आपसी संबंध बना रहे ताकि जनकल्याण और सुशासन ठीक ढंग से हो।