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    Paragraph For Gurudwara in Hindi | गुरुद्वारा के लिए अनुच्छेद हिंदी में

    Paragraph for Gurudwara in Hindi

    Paragraph For Gurudwara in Hindi: सिख गुरुद्वारा एक घरनुमा संरचना होती है, जिसमे गुरु ग्रंथ साहिब बैठते हैं। गुरु ग्रंथ साहिब एक धार्मिक पुस्तक है, जिन्हें गुरु का दर्जा दिया गया है।

    आज Paragrabh for Gurdwara in HIndi में हम जानेंगे गुरुद्वारे से जुड़ी कुछ विशेष बातें जो आपके काम आ सकती है। इसमे आपको Essay On Gurdwara भी मिलेगा, जिनमे गुरुद्वारे से संबंधित सभी जानकारी विधिवत दी गई है।

    Short Paragraph For Gurdwara in Hindi

    गुरुद्वारा सिख समुदाय का एक धार्मिक स्थल है जहाँ कोई भी पूजा कर सकता है। किसी भी समुदाय के लोग यहाँ पूजा कर सकते हैं। विशेष अवसर पर सिख समुदाय के लोग यहाँ एकत्रित होते हैं।

    यहाँ इस बात का कोई महत्व नही है कि किसका रंग, क्या है, जाति और लिंग क्या है, अमीर है या गरीब। हर व्यक्ति के लिए गुरुद्वारा खुला है।

    सिख समुदाय के लिए गुरुद्वारा (Paragraph for Gurudwara in Hindi) का बहुत अधिक महत्व है क्योंकि गुरुद्वारा गुरु ग्रंथ साहिब का निवास स्थान है जो कि सिखों के गुरु है। गुरु गोविंद सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब को को गुरु की उपाधि दी थी। गुरुद्वारे में कई धार्मिक कार्यक्रम के साथ साथ शादी से संबंधित समारोह भी होते हैं।कहते है जरूरी नही है कि गुरु शारीरिक रूप में ही हो। जो भी हमारा मार्गदर्शन करता है वह गुरु कहलाता है।

    सिखों का मार्गदर्शन गुरु ग्रंथ साहिब करते हैं जो कि एक पवित्र किताब है, लेकिन फिर भी इस पवित्र किताब को गुरु की दृष्टि से न सिर्फ देखा जाता है बल्कि सभी जरूरी सुविधाएँ भी दी जाती है।

    Long Paragraph For Gurdwara in Hindi

    जिस तरह हर धर्म से संबंधित एक ऐसी जगह होती है जहाँ उस धर्म पर आस्था रखने वाले लोग जाकर आध्यात्मिक क्रियाकलाप कर सकते है, ठीक इसी तरह सिख धर्म मे भी है। गुरुद्वारा इसी से संबंधित है। गुरुद्वारा (Paragraph for Gurudwara in Hindi) का शाब्दिक अर्थ होता है कि गुरु का द्वार, अर्थात गुरु द्वारा भगवान का घर है।

    गुरुद्वारा एक ऐसा धार्मिक स्थल है जहाँ कोई भी श्रद्धा पूर्वक आ सकता है। यहाँ सिख समुदाय के लोगो के द्वारा कई तरह के कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं। गुरुद्वारे की सबसे विशेष बात यहाँ लगने वाला लंगर है जिसमे किसी हर धर्म, जाति के लोगो को भोजन करवाया जाता है।

    गुरुद्वारे के बाहर निशान साहिब का ध्वज लगा होता है जो कि केसरिया रंग का होता है। इसमे सिख समुदाय का प्रतीक लगा होता है जो यहाँ जताता है कि सिख समुदाय को अपने धार्मिक प्रतीकों पर गर्व है और उन्हें इनको सार्वजनिक जगहों पर उपयोग करने में कोई दिक्कत नही है।

    गुरुद्वारे में प्रवेश करने से पहले हर कोई अपने जूते उतारते है और फिर अपना हाथ धुलते हैं, इसके बाद ही दीवान हाल में प्रवेश करते हैं। बिना स्नान लिए गुरुद्वारा जाना वर्जित है। इसलिये सभी स्नान करने के बाद ही यहाँ आते है।

    सभी गुरुद्वारे में एक बहुत बड़ी खाली जगह होती है जहाँ लंगर के लिए भोजन मिलता है। सिख समुदाय के लोग इसे प्रसादा नाम से संबोधित करते हैं। लंगर की व्यवस्था पूरी तरह से सिख समुदाय के लोग ही संभालते है। यहाँ सभी लोग सेवा भाव से लंगर में काम करते हैं।

    सभी एक एक पंक्ति में बैठा दिया जाता है। इस दौरान अपने सर को रुमाल से ढकना जरूरी होता है। इसके बाद प्रसादा वितरित करने वाले आते हैं। सब्जी, खीर,दाल, चावल सब कुछ थाली में परोस दिया जाता है लेकिन रोटी लेने के लिए हमें हाथ फैलाना पड़ता है, तब प्रसाद वितरित करने वाले हमारे हाथ मे रोटी रखते हैं।

    इसे भगवान का प्रसाद समझा जाता है, इसलिए सभी को पहले ही सूचित कर दिया जाता है कि थाली में उतना ही प्रसाद रखवाएं जितना खा सकते है, ताकि प्रसाद फेंकी न जाए।

    गुरुद्वारे का माहौल बहुत ही सकारात्मक रहता है। वहाँ प्रवेश करने के बाद यह बता पाना मुश्किल है कि कोई व्यक्ति। किस धर्म से नाता रखता है। सच्चे मायने में धर्म वही है जो सबको एक कर दे।

    Essay and Paragraph For Gurdwara in Hindi

    प्रस्तावना

    हमारे देश सिख समुदाय के लोगों के लोग भी रहते हैं। इनकी पूजास्थली जहाँ इनके द्वारा अपने गुरुओं को याद किया जाता है और कई तरह के धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, वह जगह गुरुद्वारा कहलाती है।

    गुरुद्वारा (Paragraph for Gurudwara in Hindi)

    गुरुद्वारा एक जगह है जो सिख समुदाय से संबंधित है। गुरुद्वारे में सिख समुदाय के लोग एकत्रित होते हैं और सामूहिक पूजा इत्यादि करते हैं।

    दुनियाँ का पहला गुरुद्वारा (Paragraph for Gurudwara in Hindi) गुरु नानक के द्वारा 1521-22 में कर्तापुर में बनाया गया था। इस वक़्त देश और दुनियाँ में कई गुरुद्वारे हैं।

    गुरुद्वारे का मतलब होता है गुरु का घर या वह द्वार जो गुरु तक पहुचाता है। पहले गुरुद्वारे में गुरु बैठते थे लेकिन आधुनिक गुरुद्वारे में एक धार्मिक पुस्तक रखी होती है जो गुरु ग्रंथ साहिब के नाम से जानी जाती है। इस धार्मिक ग्रंथ में सिख समुदाय के लोगो की बहुत गहरी आस्था है।

    गुरु ग्रंथ साहिब पुस्तक की उपस्थिति के कारण ही किसी जगह को धार्मिक जगह होने का गौरव प्राप्त होता है। इसलिये जिन जगहों पर गुरु ग्रंथ साहिब पुस्तक रखी होती है वही जगह गुरुद्वारा कहलाती है।

    सिखों के द्वारा यह भले ही कहा जाता है कि गुरुद्वारा भगवान का घर है पर फिर उनकी विचारधारा यही रहती है कि भगवान सभी जगह मौजूद है।

    सिखों के गुरु अर्जन देव के पहले वो जगहें जहाँ सिखों के धार्मिक क्रियाकलाप होते थे उन्हें धर्मशाला कहा जाता था, जिसका मतलब होता है विश्वास की एक जगह.

    The Purpose Of a Gurdwara in Hindi  गुरुद्वारा का उद्देश्य.

    गुरुद्वारा के कई उद्देश्य है जो कि निम्नलिखित है।

    आध्यात्मिक उन्नति करने की जगह.

    जैसे बाकी दूसरे धर्मों के धार्मिक स्थल आध्यात्मिक उन्नति की जगह माने जाते हैं ठीक उसी तरह गुरुद्वारे भी आध्यात्मिक उन्नति की जगह ही मानी जाती है।

    कोई भी यहाँ आकर प्रार्थना कर सकता है। लोगो को सिख धर्म से जुड़े इतिहास और उनके गुरुओं द्वारा दी गई शिक्षा को जन-जन तक पहुचाने के उद्देश्य से एक कक्षा भी बनाई जाती है जो बिलकुल किसी विद्यालय की कक्षा के समान होती है, जहाँ मेज लगी होती हैं।

    यही पर बच्चो को पंजाबी भाषा भी सिखाई जाती है यदि वो सीखने के इच्छुक हो तो। साथ ही साथ आद्यात्मिक विकास करने के लिए नियम और तौर तरीके भी बताए जाते हैं।

    धार्मिक गतिविधियां करने की जगह.

    सिख समुदाय के लोग यहाँ इकट्ठे होकर कई त्योहारों का जश्न मनाते हैं। गुरुपर्व एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार माना जाता है, इस दिन गुरुद्वारे में कई धार्मिक कार्यक्रम होते हैं।

    गुरु ग्रंथ साहिब का अखंड पाठ भी गुरुद्वारे में ही किया जाता है। इसके साथ ही निस्वार्थ भाव से किसी की सेवा करने का अवसर भी गुरुद्वारा में ही मिलता है। कोई भी व्यक्ति अपनी सेवा गुरुद्वारे (Paragraph for Gurudwara in Hindi) में दे सकता है। इनका ऐसा मानना है कि सेवा भाव की मुक्ति का द्वार है क्योंकि इससे गुरु प्रसन्न होते है।

    जरूरतमंदों की सेवा करना.

    गुरुद्वारे का काम सिर्फ धार्मिक क्रियाकलापों तक ही सीमित नही बल्कि यहां पर जरूरतमंदों की सेवा भी की जाती है। जरूरतमंद और भूखे लोगों को मुफ्त में भोजन दिया जाता है।

    लंगर में मिलने वाला भोजन किसी विशेष जाति या समुदाय के लिए नहीं होता हर जाति धर्म और समुदाय के लोग यहां पर आकर भोजन कर सकते हैं।

    इसके साथ-साथ जिन जरूरतमंदों के पास घर की व्यवस्था नहीं है वह भी गुरुद्वारे में शरण ले सकते हैं। निष्काम सेवा भाव को यहां बहुत अधिक बढ़ावा दिया जाता है कोई भी व्यक्ति गुरुद्वारे में आकर निष्काम भाव से अपनी सेवा दे सकता है।

    गुरुद्वारे के अंदर की संरचना.

    सिख समुदाय के लोग तस्वीरों और मूर्तियों की पूजा नहीं करते इसी वजह से गुरुद्वारे के अंदर किसी भी तरह की मूर्ति या धार्मिक तस्वीर नहीं होती है।

    सिख समुदाय के लोगों का यह मानना है कि इस दुनिया को चलाने वाले भगवान है और भगवान का कोई एक स्वरूप नहीं होता है।

    इस वजह से वह मूर्ति पूजा पर आस्था नहीं रखते इसके साथ-साथ गुरुद्वारे के अंदर ना तो अगरबत्ती का उपयोग होता है ना ही की घंटी यहां लगी होती है। किसी भी तरह के धर्म और आस्था संबंधित उपकरण यहां पर नहीं लगे होते।

    गुरुद्वारे के अंदर धार्मिक आस्था से संबंधित सिर्फ एक किताब रखी होती है जिस पर हमें अपना ध्यान केंद्रित करना होता है। यह धार्मिक गुरु ग्रंथ साहिब कहलाती है।

    इसे सिख समुदाय के गुरुओं (Paragraph for Gurudwara in Hindi) के द्वारा रचित किया गया है । इस धार्मिक ग्रंथ को सभी सम्मान की दृष्टि से देखते हैं और इन्हें गुरुद्वारे के अंदर गुरु का दर्जा दिया जाता है।

    रात के वक्त गुरु ग्रंथ साहिब को अपने कमरे में रख दिया जाता है। सुबह होते ही जैसे ही पूजा प्रारंभ होती है तो गुरु ग्रंथ साहिब को मुख्य हॉल में रख दिया जाता है।

    प्रत्येक गुरुद्वारे में 4 दरवाजे बने होते हैं जिनमें से पहला गेट शांति का द्वार, दूसरा जिंदगी का द्वार, तीसरा शिक्षा का द्वार और चौथा कृपा का द्वार कहलाता है।

    गुरुद्वारे मे बने चार दरवाजे इस बात का भी इशारा है कि हर दिशाओं से आने वाले लोगों का गुरुद्वारे में स्वागत है। साथ ही साथ हर जाति के लोग यहां पर एक बराबर है।

    यहां पर किसी भी जाति या धर्म के आधार पर किसी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया जाता है क्योंकि ईश्वर की दृष्टि में सब एक हैं।

    मुफ्त भोजन लंगर में

    हर गुरुद्वारे में एक लंगर जरूर होता है जो हर उस व्यक्ति को मुफ्त में भोजन देता है जिन्हें भोजन की जरूरत होती है। लंगर के पास ही भोजन बनाने की व्यवस्था होती है।

    लंगर में इतना भोजन बनाया जाता है कि सभी व्यक्ति को पर्याप्त खाना मिल सके। लंगर में मिलने वाला खाना बहुत ही साधारण होता है जिसे हर व्यक्ति खा सकता हैं।

    सिख समुदाय में इस बात की बाध्यता नहीं है कि व्यक्ति शाकाहारी ही हो लेकिन फिर भी लंगर में मिलने वाला खाना शाकाहारी ही होता है ताकि हर धर्म और संप्रदाय में आस्था रखने वाले लोग लंगर में भोजन कर सकें।

    लंगर में मिलने वाले खाने में चपाती, दाल,सब्जी, चावल होता है। मछली और अंडों को मांसाहारी भोजन के तौर पर देखा जाता है इस वजह से इनको लंगर में शामिल नहीं किया जाता।

    लंगर हाल में प्रसाद वितरण संबंधी कुछ अन्य नियम इस प्रकार है:-

    जब तक सभी को भोजन वितरित न हो जाए तब तक ग्रहण करना शुरू नही किया जाता। भोजन वितरित हो जाने के बाद जो बोले सो निहाल, सतश्री अकाल के उच्चारण के बाद भोजन ग्रहण करते हैं।

    भोजन करने के दौरान बात नही की जाती। यदि किसी की थाली में कुछ नही है तो प्रसाद वितरित करने वालों से बहुत शालीनता से माँग सकते हैं।

    खाने के दौरान, नमक, अचार, शक्कर आदि की कमी महसूस हो रही है तो बिना संकोच के माँग सकते हैं।

    भोजन ग्रहण करने के बाद तब तक न उठे जब तक पंक्ति में बैठे सभी व्यक्ति भोजन ग्रहण नही कर लेते।

    भोजन करने के बाद कभी भी अपने हाथ या मुँह थाली में नही धुलना है। हाथ धुलने के लिए एक खास जगह बनाई जाती है, जहाँ साबुन से हाथ धुलने की व्यवस्था होती है।

    खाने के बाद प्लास्टिक के बर्तनों को कचरे के डिब्बे में डालना जरूरी है ताकि किसी भी तरह की गंदगी न फैले।

    गुरुद्वारे में प्रवेश करने के नियम.

    गुरुद्वारे में प्रवेश करने से पहले शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। सभी श्रद्धालु पहले अपने जूते उतार देते हैं उसके बाद ही गुरुद्वारे में प्रवेश करते हैं।

    गुरुद्वारे (Paragraph for Gurudwara in Hindi) में प्रवेश करने से पहले अपने सर को ढकना पड़ता है कोई व्यक्ति यदि शराबी या ड्रग्स के नशे में है तो वह गुरुद्वारे में प्रवेश नहीं कर सकता।साथ ही साथ तंबाकू और सिगरेट जैसी चीजों के साथ भी कोई गुरुद्वारे में प्रवेश नहीं कर सकता।

    गुरुद्वारे में प्रवेश करने के बाद सबसे पहले सिख लोग गुरु ग्रंथ साहिब को नमन करते हैं, इसके लिए वह जमीन पर बैठकर अपने माथे को जमीन पर रखते हैं।

    इसके जरिए वह गुरु ग्रंथ साहिब के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करते हैं और यह जताना चाहते हैं कि वह किताब में लिखी हुई बातों को सच मानते हैं और सच के सामने अपना सर झुकाते हैं।

    जो व्यक्ति दान करना चाहते हैं वह पैसे या भोजन से संबंधित कुछ भी चीज दान कर सकते हैं। गुरु ग्रंथ साहिब के सामने एक दान पेटी होती है, जहां पर यह दान किया जा सकता है। दान से प्राप्त पैसों से लंगर में भोजन की व्यवस्था होती है। जो व्यक्ति खाना या फिर पैसों का दान करने में सक्षम नहीं है वह पुष्प दान भी कर सकता है।

    गुरुद्वारे में बैठने के नियम

    कोई भी व्यक्ति गुरुद्वारे की फर्श पर बैठ सकता है और कुछ वक्त गुरुद्वारे में व्यतीत कर सकता है, लेकिन सीट या गुरु ग्रंथ साहिब के तरफ पैर करके बैठना वर्जित है।

    यदि कोई व्यक्ति गुरु ग्रंथ साहिब की परिक्रमा करना चाहता है तो उसे हमेशा घड़ी के घूमने की दिशा या न सी दीवानी सी दिशा में है हॉल में महिलाएं और पुरुष अलग-अलग जगहों पर बैठते हैं।

    गुरुद्वारे में पूजा करने के नियम

    प्रत्येक गुरुद्वारे में एक ग्रंथी होता है जो कि प्रतिदिन होने वाले धार्मिक क्रियाकलापों की सूची तैयार करता है। ग्रंथी के द्वारा ही गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है। ग्रंथी को पंजाबी भाषा का अच्छा ज्ञान होना होता है। साथ ही साथ गुरुमुखी पढ़ने में उसे विशेष दक्षता हासिल होती है।

    गुरुद्वारे में दिन भर में होने वाली गतिविधियां कुछ इस प्रकार है:-

    कीर्तन.

    सुबह की शुरुआत गुरु नानक जी के द्वारा लिखे गए भजन से होती है। भजन को बहुत ही मधुर संगीत के साथ गाया जाता है। कीर्तन में कई वाद्ययंत्रों जैसे तबला, हारमोनियम इत्यादि का उपयोग भी किया जाता है।

    उपदेश.

    कीर्तन होने के बाद गुरुद्वारे में उपदेश होते हैं। इसमें सिख समुदाय के इतिहास के बारे में चर्चा होती है। इस दौरान आनंद साहिब के द्वारा गाएं गए भजन जिसको सिखों के तीसरे गुरु अमर दास ने लिखा था उसका भी सुना जाता है।

    अरदास (प्रार्थना)

    इसके बाद प्रार्थना मंडली में शामिल सभी लोग गुरु ग्रंथ साहिब की तरफ मुँह करके खड़े हो जाते हैं, और प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना करते वक़्त सभी लोग वाहेगुरु शब्द को बार बार दोहराते है और गुरु को याद करते हैं।

    हुकम

    प्रार्थना करने के बाद गुरु ग्रंथ साहिब के किसी के किसी पन्ने को बिना सोचे समझे खोला जाता है। इस पन्ने के बाएं तरफ जो भजन लिखी होती है उसे पढ़ा जाता है और उस लिखित ज्ञान को उस दिन की सीख मानी जाती है।

    हुकम के दौरान अपने बच्चो को शांत रखा जाता है। हुकम का उच्चारण कोई भी व्यक्ति नही करते बल्कि सभी के द्वारा सिर्फ सुना जाता है। इसे सुनने वक़्त दोनों हाथ मुड़े हुए होते है।

    हुकम में जो भी कहा जाता है उसे गुरु की वाणी मानी जाती है और फिर उसे अपने जीवन मे उतारने की कोशिश की जाती है।

    औपचारिक भोजन.

    सभी प्रार्थना पूरी हो जाने के बाद प्रार्थना में शामिल सभी लोगो को भोजन वितरित किया जाता है। इसे प्रसाद कहा जाता है। प्रसाद में कुछ मिष्ठान जरूर शामिल होता है। भोजन के पहले पाँच भाग खालसा सदस्यों को दिया जाता है।

    भोजन लेने का भी नियम है। भोजन को दोनों हाथ खोलकर लिया जाता है। एक हाथ मे कभी भी भोजन नही दिया जाता है। यदि हाथ साफ नही है तो पहले हाथ साफ करना पड़ता है फिर भोजन दिया जाता है।

    यदि प्रसाद गलती से जमीन पर गिर जाता है तो उसे तुरंत उठाकर सम्मान के साथ अलग रख दिया जाता है ताकि पैरों के नीचे प्रसाद न आए।
    निशान साहिब.

    जब तक सिख ध्वज शिखर पर नही लहराता है तब तक उसे गुरुद्वारा नही कहा जाता है। निशान साहिब को बहुत ही पवित्र माना जाता हैं और इसके प्रति सभी की आस्था होती है। ध्वज केसरिया रंग और त्रिभुजाकार होता है। इसमे सिख समुदाय का प्रतीक चिन्ह बना रहता है।

    दरबार साहिब (दीवान हॉल)

    दीवान हॉल किसी भी गुरुद्वारे का सबसे महत्वपूर्ण कक्ष माना जाता है क्योंकि इसी हॉल में सभी भजन, कीर्तन होते हैं। यह कमरा बहुत ही खास तरीके से बनाया जाता है, इसलिए देखने वाले को यह बहुत ही आकर्षक लगता है।

    इस कमरे के बीचोबीच एक तख्त होता है। यह तख्त इसलिए बनाया जाता है क्योंकि सिख समुदाय गुरु ग्रंथ साहिब को एक इंसान की तरह ही देखते हैं। उनका ऐसा मानना है कि इसमे वो विराजते हैं।

    गुरु ग्रंथ साहिब जिस जगह पर विराजमान होते है उसे मांझी साहिब कहा जाता है। मांझी साहिब के ऊपर सोने से बनी एक पालकी होती है। गुरु ग्रंथ साहिब के प्रति अपना सम्मान दिखाने के लिए उनके ऊपर रुमाल चढ़ाएं जाते हैं।

    सिख सेवकर्ता गुरु ग्रंथ साहिब के बगल में बैठे होते हैं जिनके हाथ मे एक चौरी होती है, जो घोड़े के बालों से बनी होती है। समय समय पर इसी चौरी के द्वारा गुरु ग्रंथ साहिब के ऊपर हवा की जाती है, जो कि सम्मान का प्रतीक है।

    गुरु ग्रंथ साहिब के सामने एक लाल कालीन बिछी होती है। कोई भी श्रद्धालू आकर सबसे पहले लालकलीन पर मष्तक रखकर नमन करता है।

    लाल कालीन बिछाने का तात्पर्य यह है कि गुरु ग्रंथ साहिब को राजसी सम्मान मिले। गुरु ग्रंथ साहिब के लिए एक शयन कक्ष भी बना होता है जिसे बाबाजी का कमरा कहा जाता है। इस कमरे में गुरु ग्रंथ साहिब को रात में रख दिया जाता है।

    इसके पीछे की मान्यता है कि गुरु ग्रंथ साहिब को भी नींद की उसी तरह जरूरत पड़ती है जैसे किसी आम इंसान को।

    बाबाजी के कमरे में इस पवित्र किताब की कई प्रतियाँ रखी होती है। कई लोग इस पवित्र किताब को गुरुद्वारे से खरीदते भी है। यह कमरा बहुत खूबसूरत बनाया जाता है। गुरुद्वारे में बने सभी कमरों में सबसे महत्वपूर्ण कमरा यही है, इसीलिए इसे ऊँचाई वाले स्थान में बनाया जाता है।

    निष्कर्ष.

    गुरुद्वारा बनाने के पीछे का मुख्य उद्देश्य यह है कि सिख समुदाय के लोग एक जगह पर बैठकर गुरु ग्रंथ साहिब को पढ़ सकें। इसीलिए यहाँ बच्चे, स्त्री और पुरुष सभी के लिए सुविधाएँ मौजूद है। यहाँ महिलाएं एकत्रित होकर किसी विषय पर चर्चा कर सकती है साथ मे बच्चे पढ़ाई भी कर सकते हैं।

    यदि किसी यात्री को भोजन नही मिल पा रहा है तो वह किसी भी गुरुद्वारे में जाकर भोजन (प्रसादा) ले सकता है। सिख धर्म सभी व्यक्तियों के प्रति समभाव रखता है। गुरुद्वारे के नियम भी इसी बात को ध्यान में रखकर बनाए गए है कि कोई भी जरूरतमंद मदद लेने में संकोच न करें।